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ईद-उल-अज़हा 2025,बकरीद |
दिल्ली: ईद-उल-अज़हा, जिसे बकरीद के नाम से भी जाना जाता है, मुस्लिम समुदाय का एक बेहद खास त्योहार है। यह पर्व पैगंबर इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है, जिसमें लोग भेड़, बकरी या अन्य जानवरों की बलि देते हैं। लेकिन इस बार अफ्रीकी देश मोरक्को ने बकरीद 2025 पर कुर्बानी पर रोक लगाकर सबको चौंका दिया है। इस फैसले ने वहां की जनता में गुस्सा और बहस छेड़ दी है। आइए जानते हैं इस विवाद की पूरी कहानी।
मोरक्को, जहां 99% आबादी मुस्लिम है, वहां के राजा मोहम्मद VI ने इस साल कुर्बानी पर रोक लगाने का ऐलान किया। इसका कारण है देश में चल रहा भयंकर सूखा और पशुओं की घटती संख्या। खबरों के मुताबिक, मोरक्को में पिछले तीन सालों से बारिश की कमी ने चारे और पानी की भारी किल्लत पैदा कर दी है। इससे पशुओं की आबादी में 38% की कमी आई है, जिसने मांस उत्पादन और अर्थव्यवस्था पर भी असर डाला है। राजा ने कहा कि यह फैसला पर्यावरण और आर्थिक संकट को देखते हुए लिया गया है।
लेकिन यह फैसला मोरक्को की जनता को रास नहीं आया। कई शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए और विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। सोशल मीडिया पर भी इस फैसले की जमकर आलोचना हो रही है। कुछ लोगों का कहना है कि कुर्बानी ईद-उल-अज़हा का अहम हिस्सा है और इसे रोकना उनकी धार्मिक भावनाओं पर चोट है। खबरें यह भी हैं कि मोरक्को की सुरक्षा बलों ने कई जगहों पर लोगों के घरों में घुसकर कुर्बानी के लिए रखे गए पशुओं को जब्त किया, जिससे गुस्सा और बढ़ गया।
हालांकि, कुछ लोग इस फैसले का समर्थन भी कर रहे हैं। उनका कहना है कि सूखे की स्थिति में पशुओं को बचाना जरूरी है। राजा मोहम्मद VI ने यह भी ऐलान किया कि वह पूरे देश की ओर से एक प्रतीकात्मक कुर्बानी करेंगे, जैसा कि पैगंबर मुहम्मद ने अपने उन अनुयायियों के लिए किया था जो कुर्बानी नहीं कर पाते थे। फिर भी, यह फैसला छोटे व्यापारियों और मौसमी मजदूरों के लिए बड़ा झटका है, क्योंकि बकरीद उनके सालाना कमाई का बड़ा हिस्सा होती है।
दिल्ली में भी बकरीद की तैयारियां जोरों पर हैं। लेकिन मोरक्को की इस खबर ने यहां भी चर्चा शुरू कर दी है। लोग सोच रहे हैं कि क्या पर्यावरण और धर्म के बीच संतुलन बनाना इतना आसान है? दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम ने भी लोगों से अपील की है कि कुर्बानी साफ-सफाई के साथ और तय नियमों के तहत की जाए।
यह विवाद हमें सोचने पर मजबूर करता है कि आधुनिक चुनौतियों और धार्मिक परंपराओं के बीच तालमेल कैसे बिठाया जाए। आप इस बारे में क्या सोचते हैं? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताएं।
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