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रूस,तालिबान,आतंकवाद |
मास्को: एक ऐतिहासिक और चौंकाने वाले फैसले में, रूस की सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार, 17 अप्रैल 2025 को तालिबान को आतंकी संगठन की सूची से हटा दिया। यह फैसला 2003 में तालिबान को आतंकी संगठन घोषित करने के बाद लिया गया है, जब रूस ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया था। इस कदम को रूस और अफगानिस्तान के बीच संबंधों को सामान्य करने की दिशा में एक बड़े कदम के रूप में देखा जा रहा है, जो वैश्विक राजनीति में नए समीकरण बना सकता है।
रूस की सुप्रीम कोर्ट के जज ओलेग नेफेदोव ने इस फैसले को तत्काल प्रभाव से लागू करने की घोषणा की। यह निर्णय रूस के प्रॉसिक्यूटर जनरल के अनुरोध पर लिया गया, जिसके पीछे पिछले साल पारित एक कानून का आधार है। इस कानून के तहत किसी संगठन की आतंकी संगठन की सूची से हटाने का प्रावधान है, बशर्ते वह आतंकी गतिविधियों को छोड़ दे। रूस का यह कदम तालिबान के साथ बढ़ते राजनयिक और व्यापारिक रिश्तों को और मजबूत करने की दिशा में माना जा रहा है।
क्यों लिया गया यह फैसला?
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अफगानिस्तान,वैश्विक राजनीति |
रूस और तालिबान के बीच हाल के वर्षों में रिश्ते धीरे-धीरे गहरे हुए हैं। 2021 में अमेरिकी सेना की अफगानिस्तान से वापसी के बाद तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद से रूस ने तालिबान के साथ अनौपचारिक संपर्क बढ़ाए और विभिन्न मंचों पर तालिबान के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया। रूस का मानना है कि तालिबान के साथ सहयोग से अफगानिस्तान में स्थिरता लाई जा सकती है, जो क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है।
इसके अलावा, रूस और तालिबान का एक साझा दुश्मन है - इस्लामिक स्टेट-खोरासान (आईएस-के)। मार्च 2024 में मास्को के एक कॉन्सर्ट हॉल पर हुए हमले, जिसमें 145 लोग मारे गए थे, के लिए आईएस-के ने जिम्मेदारी ली थी। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने तालिबान को आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में "सहयोगी" तक करार दिया है। रूस का मानना है कि तालिबान के साथ बेहतर रिश्ते इस्लामिक स्टेट जैसे संगठनों के खिलाफ लड़ाई में मदद करेंगे।
वैश्विक और क्षेत्रीय प्रभाव
रूस का यह कदम तालिबान के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत माना जा रहा है। हालांकि, यह फैसला तालिबान सरकार को औपचारिक मान्यता देने के बराबर नहीं है। अभी तक कोई भी देश ने तालिबान सरकार को आधिकारिक रूप से मान्यता नहीं दी है, क्योंकि तालिबान ने मानवाधिकार, खासकर महिलाओं और लड़कियों की शिक्षा और स्वतंत्रता पर कई प्रतिबंध लगाए हैं।
रूस का यह कदम मध्य एशियाई देशों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है। कजाकिस्तान और किर्गिस्तान जैसे देश पहले ही तालिबान को अपनी आतंकी संगठनों की सूची से हटा चुके हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि रूस का यह फैसला क्षेत्रीय व्यापार और ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ावा दे सकता है। रूस अफगानिस्तान को दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए गैस निर्यात के ट्रांजिट हब के रूप में देख रहा है।
भारत के लिए इसका क्या मतलब?
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तालिबान,आतंकवाद,अफगानिस्तान, भारत |
भारत के लिए यह फैसला कई सवाल खड़े करता है। भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है और अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से सतर्क रुख अपनाया है। रूस के इस कदम से भारत को अपनी अफगान नीति पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है, खासकर तब जब क्षेत्रीय शक्तियां तालिबान के साथ रिश्ते सामान्य कर रही हैं।
क्राइसिस ग्रुप के एशिया प्रोग्राम के वरिष्ठ विश्लेषक इब्राहिम बहिस का कहना है कि तालिबान को आतंकी सूची से हटाने से व्यापार और राजनीतिक संबंधों में कानूनी बाधाएं कम होंगी, लेकिन इसके अन्य बड़े फायदे स्पष्ट नहीं हैं। वहीं, दक्षिण एशिया विशेषज्ञ माइकल कुगेलमैन का मानना है कि यह कदम बहुत बड़ा बदलाव नहीं लाएगा, क्योंकि कई देशों ने तालिबान को कभी आतंकी संगठन घोषित ही नहीं किया था।
रूस का तालिबान को आतंकी संगठन की सूची से हटाने का फैसला वैश्विक राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है। यह कदम न केवल रूस और तालिबान के बीच संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर नए गठबंधनों और चुनौतियों को भी जन्म दे सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अन्य देश इस फैसले पर क्या रुख अपनाते हैं और इसका अफगानिस्तान की जनता, खासकर महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर क्या प्रभाव पड़ता है।
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