मिडिल ईस्ट मे तनाव : Gulf देशों ने Iran को दिया भरोसा, अमेरिका को अपनी जमीन इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं
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नई दिल्ली, 2 अप्रैल 2025: मध्य पूर्व में इन दिनों तनाव का माहौल है। खबरों के मुताबिक, संयुक्त अरब अमीरात (UAE), कुवैत, जॉर्डन और इस क्षेत्र के कई अन्य देशों ने हाल ही में ईरान के राष्ट्रपति को फोन करके भरोसा दिलाया है कि वे अमेरिका को अपनी जमीन या हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल ईरान के खिलाफ किसी भी सैन्य कार्रवाई के लिए नहीं करने देंगे। यह खबर ऐसे समय में आई है जब अमेरिका और ईरान के बीच तनाव चरम पर है।
क्या है पूरा मामला?
पिछले कुछ हफ्तों से अमेरिका ने मध्य पूर्व में अपनी सैन्य ताकत बढ़ाई है। हाल ही में खबर आई थी कि अमेरिका ने कतर में अपने 16 कार्गो विमान उतारे हैं, जिसके बाद क्षेत्र में हलचल मच गई। दूसरी ओर, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका ने ईरान पर हमला किया, तो उसे करारा जवाब मिलेगा। इस बीच, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी धमकी दी है कि अगर ईरान ने नई परमाणु डील पर बातचीत नहीं की, तो सैन्य कार्रवाई की जा सकती है।
गल्फ देशों का रुख
गल्फ देशों का यह बयान एक बड़े कूटनीतिक बदलाव का संकेत देता है। कुवैत के अमीर ने ईरान के राष्ट्रपति से फोन पर बातचीत में साफ कहा कि कुवैत अपनी जमीन से किसी भी देश के खिलाफ आक्रामक कार्रवाई की इजाजत नहीं देगा। सऊदी अरब, कतर और UAE ने भी इसी तरह का रुख अपनाया है। इन देशों का कहना है कि वे न तो अपने हवाई क्षेत्र का इस्तेमाल अमेरिकी युद्धक विमानों को ईरान पर हमला करने के लिए देंगे और न ही रिफ्यूलिंग या बचाव अभियानों के लिए अपनी जमीन का उपयोग करने की अनुमति देंगे।
क्षेत्र में क्यों है तनाव?
ईरान और अमेरिका के बीच रिश्ते लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं। 1979 की इस्लामिक क्रांति के बाद से दोनों देशों के बीच औपचारिक राजनयिक संबंध खत्म हो गए थे। हाल के वर्षों में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर तनाव और बढ़ गया है। पश्चिमी देशों का आरोप है कि ईरान गुप्त रूप से परमाणु हथियार बनाने की कोशिश कर रहा है, जबकि ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है।
क्या होगा आगे?
फिलहाल, किसी सैन्य कार्रवाई की खबर नहीं है, लेकिन क्षेत्र में तनाव बना हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि गल्फ देशों का यह कदम क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक सकारात्मक संकेत हो सकता है। हालांकि, कुछ लोग इसे लेकर संशय में हैं। उनका कहना है कि ये देश भले ही बयान दे रहे हों, लेकिन अगर अमेरिका दबाव डालता है, तो क्या ये देश वाकई अपने वादे पर टिके रह पाएंगे?
आपकी राय क्या है?
मध्य पूर्व की इस स्थिति पर आप क्या सोचते हैं? क्या गल्फ देशों का यह फैसला क्षेत्र में शांति ला सकता है, या यह सिर्फ एक कूटनीतिक बयान है? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताएं। यह लेख सूचना और जागरूकता के उद्देश्य से लिखा गया है। ==========================================================================
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