12 अप्रैल 2025: एक हैरान करने वाले घटनाक्रम में, ईरान ने अमेरिका को एक ऐसा प्रस्ताव दिया है, जो मध्य पूर्व की सियासत को पूरी तरह से बदल सकता है। ईरान ने सुझाव दिया है कि पूरे मध्य पूर्व को परमाणु हथियारों से मुक्त किया जाए, जिसमें इजरायल का भी पूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण शामिल हो। इस प्रस्ताव ने वैश्विक मंच पर हलचल मचा दी है, क्योंकि यह पहली बार है जब ईरान ने इतने खुले तौर पर इजरायल के परमाणु हथियारों के मुद्दे को उठाया है।
ईरान ऑब्जर्वर ने शनिवार सुबह अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर इस खबर को साझा करते हुए एक तस्वीर भी पोस्ट की, जिसमें एक शतरंज की बिसात पर ईरान और अमेरिका के झंडे दिखाई दे रहे हैं। यह तस्वीर साफ तौर पर इस बात का प्रतीक है कि मध्य पूर्व में चल रहा यह सियासी खेल किसी शतरंज की बाजी से कम नहीं है।
ईरान और अमेरिका के बीच ओमान में परमाणु कार्यक्रम को लेकर बातचीत चल रही है। अमेरिका ने ईरान को 60 दिनों की समय सीमा दी है कि वह अपने परमाणु कार्यक्रम को पूरी तरह से खत्म कर दे, वरना सैन्य कार्रवाई की धमकी दी है। दूसरी ओर, ईरान का कहना है कि उसका परमाणु कार्यक्रम सिर्फ नागरिक उपयोग के लिए है और वह किसी भी हालत में इसे पूरी तरह से बंद नहीं करेगा। ऐसे में, ईरान का यह नया प्रस्ताव एक तरह से अमेरिका और उसके सहयोगी इजरायल पर दबाव बनाने की रणनीति माना जा रहा है।
जानकारों का कहना है कि इजरायल के पास अनुमानित तौर पर 90 से 400 परमाणु हथियार हैं, लेकिन उसने कभी भी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की। इजरायल ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर भी नहीं किए हैं और न ही उसने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) को अपने परमाणु ठिकानों की जांच करने की अनुमति दी है। वहीं, ईरान ने एनपीटी पर हस्ताक्षर किए हैं और उसका कहना है कि वह परमाणु हथियार बनाने की कोशिश नहीं कर रहा। लेकिन 2018 में अमेरिका ने ईरान के साथ हुए परमाणु समझौते (जेसीपीओए) से खुद को अलग कर लिया था, जिसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है।
ईरान के इस प्रस्ताव ने एक बार फिर अमेरिका और पश्चिमी देशों की दोहरे मापदंडों वाली नीति को उजागर कर दिया है। एक तरफ अमेरिका इजरायल के परमाणु हथियारों पर चुप्पी साधे हुए है, वहीं दूसरी तरफ ईरान पर लगातार दबाव बनाया जा रहा है। मध्य पूर्व में शांति की उम्मीदें तब तक अधूरी ही रहेंगी, जब तक सभी देशों के लिए एक समान नियम लागू नहीं किए जाते।
यह देखना दिलचस्प होगा कि अमेरिका और इजरायल इस प्रस्ताव पर क्या रुख अपनाते हैं। क्या यह प्रस्ताव मध्य पूर्व में शांति की दिशा में एक कदम होगा, या फिर यह तनाव को और बढ़ाएगा? आने वाले दिन इस सवाल का जवाब जरूर देंगे।
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