155 साल पुराने मदरसे पर अलल औलाद बताकर शेख समाज के लोग जमाना चाहते है कब्ज़ा: गांव के गरीब मुस्लिमों ने लगाई वक्फ बोर्ड से गुहार
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वक्फ बोर्ड, मदरसा विवाद, अम्बेहटा सहारनपुर |
अम्बेहटा, सहारनपुर: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के अम्बेहटा पीर गांव में 155 साल पुराने मदरसे को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। गांव के शेख समाज के कुछ दबंग लोग इस ऐतिहासिक मदरसे को अपनी निजी संपत्ति बताकर इसके हिस्सों को तोड़ने और उस पर कब्जा करने की कोशिश में जुटे हैं। वहीं, गांव के अन्य मुस्लिम समुदाय के लोग इसे 'अल्ल खैर' यानी सभी मुस्लिमों की साझा संपत्ति मानते हैं और इसका विरोध कर रहे हैं। इस मामले ने न सिर्फ गांव में तनाव पैदा कर दिया है, बल्कि वक्फ बोर्ड और भारत सरकार के वक्फ संशोधन कानून पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं।
क्या है पूरा मामला?
गांव वालों के मुताबिक, यह मदरसा करीब डेढ़ सदी से चलता आ रहा है और दारुल उलूम देवबंद की स्थापना से भी 30 साल पहले से मौजूद है। इसका लंबा इतिहास इसे पूरे गांव के लिए एक साझा धरोहर बनाता है। लेकिन शेख बिरादरी के कुछ प्रभावशाली लोग इसे 'अल्ल औलाद' यानी अपने पूर्वजों की संपत्ति बताकर इस पर अपना हक जताने की कोशिश कर रहे हैं। गांव के एक निवासी जायद वल्दियत फरहद ने बताया कि शेख समाज के दबंगों ने पहले इस जमीन को विवादित बनाकर छोड़ दिया था और अब इसे पूरी तरह अपने कब्जे में लेना चाहते हैं।
इसके खिलाफ गांव के लोगों ने वक्फ बोर्ड में आवेदन देकर इसकी नकल निकलवाई, जिसमें साफ हुआ कि यह मदरसा 'अल्ल खैर' है, यानी यह किसी एक परिवार या बिरादरी की निजी संपत्ति नहीं, बल्कि सभी मुस्लिमों के लिए है। फिर भी, शेख समाज के कुछ लोग इसे तोड़ने और कब्जाने की जिद पर अड़े हैं।
गरीब मुस्लिमों की आवाज दबाई जा रही
गांव के गरीब और कमजोर तबके के लोगों का कहना है कि उनकी आवाज को दबाया जा रहा है। उनका आरोप है कि शेख समाज के पास राजनीतिक रसूख और दबदबा है, जिसके चलते वे डरे हुए हैं। एक ग्रामीण ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "हमारे पास न तो पैसे हैं, न ही ताकत। शेख लोग राजनीतिक समर्थन के बल पर हमारी जमीन छीनना चाहते हैं। हम चाहते हैं कि वक्फ बोर्ड इस मामले में सख्ती से कार्रवाई करे।"
वक्फ संशोधन का असर: किसे हो रहा नुकसान?
इस विवाद ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है- भारत सरकार द्वारा प्रस्तावित वक्फ संशोधन विधेयक से सबसे ज्यादा नुकसान किसे हो रहा है? क्या यह शेख, सैयद और काजियों जैसे प्रभावशाली तबके को प्रभावित कर रहा है, या फिर गरीब मुस्लिमों को? गांव वालों का मानना है कि अगर वक्फ बोर्ड की शक्तियों को कम किया गया या इसमें बदलाव हुए, तो दबंग और रसूखदार लोग आसानी से ऐसी संपत्तियों पर कब्जा कर लेंगे, जिससे गरीब मुस्लिमों का हक छिन जाएगा।
वक्फ संशोधन विधेयक में प्रस्तावित बदलावों में गैर-मुस्लिमों और महिलाओं को वक्फ बोर्ड में शामिल करने, संपत्ति के दावों को पारदर्शी बनाने जैसे कदम शामिल हैं। सरकार का दावा है कि इससे भ्रष्टाचार और कब्जे पर रोक लगेगी। लेकिन अम्बेहटा जैसे मामलों को देखकर लगता है कि अगर बोर्ड कमजोर हुआ, तो गरीबों की आवाज और दब सकती है।
आगे क्या?
गांव के लोग अब वक्फ बोर्ड से इस मामले में हस्तक्षेप की उम्मीद लगाए बैठे हैं। उनका कहना है कि अगर जल्द कार्रवाई न हुई, तो यह ऐतिहासिक मदरसा हमेशा के लिए खत्म हो सकता है। दूसरी ओर, शेख समाज के लोग अपने दावे पर अड़े हैं और इसे अपने पुरखों की विरासत बता रहे हैं।
यह मामला न सिर्फ एक गांव की समस्या है, बल्कि देश भर में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और संरक्षण पर चल रही बहस का एक जीता-जागता उदाहरण बन गया है। अब सबकी नजर इस बात पर है कि वक्फ बोर्ड और स्थानीय प्रशासन इस विवाद को कैसे सुलझाते हैं।
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