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नई दिल्ली/बेंगलुरु: राजनीति और सरकारी नौकरी के बीच की पतली लकीर पर एक बार फिर सवाल उठा है। कर्नाटक के एक पंचायत विकास अधिकारी (PDO) को सिर्फ इसलिए निलंबित कर दिया गया क्योंकि उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी समारोह में संगठन की यूनिफॉर्म पहन ली। ये घटना 12 अक्टूबर 2025 को हुई, और अब ये पूरे देश में बहस का विषय बन गई है। क्या ये कांग्रेस की RSS के खिलाफ नई रणनीति है, या सिर्फ सरकारी नियमों का पालन? आइए, इसकी गहराई में उतरते हैं।
घटना का पूरा चक्र: क्या हुआ था? मीडिया की पुष्टि: द हिंदू और NDTV ने क्या कहा?
कर्नाटक के PDO प्रवीण कुमार केपी ने RSS के 100 साल पूरे होने के जश्न में हिस्सा लिया। वहां उन्होंने RSS की खाकी हाफ-पैंट और सफेद शर्ट वाली यूनिफॉर्म पहनी, जो संगठन की परंपरा का हिस्सा है। हाथ में लाठी थामे, वो एक मार्च में दिखे। ये तस्वीर वायरल हो गई, और सोशल मीडिया पर तूफान मच गया।
कांग्रेस की अगुवाई वाली कर्नाटक सरकार ने फौरन एक्शन लिया। प्रवीण कुमार को निलंबित कर दिया गया। वजह? सिविल सर्विस कंडक्ट रूल्स का उल्लंघन। ये नियम साफ कहते हैं कि सरकारी कर्मचारी को पद पर रहते हुए किसी राजनीतिक या वैचारिक संगठन से जुड़ना मना है। सरकार का कहना है कि RSS एक सांस्कृतिक संगठन होने का दावा करता है, लेकिन उसकी विचारधारा BJP से जुड़ी हुई है, जो राजनीतिक है।
ये सिर्फ सोशल मीडिया की अफवाह नहीं है। प्रमुख अखबारों ने इसे कवर किया है। द हिंदू ने रिपोर्ट में बताया कि कर्नाटक सरकार ने निलंबन का आदेश जारी करते हुए कहा, "सरकारी कर्मचारियों को तटस्थ रहना चाहिए। RSS इवेंट में यूनिफॉर्म पहनना राजनीतिक संबद्धता दिखाता है।" वहीं, NDTV ने प्रवीण कुमार के बैकग्राउंड पर फोकस किया। वो एक अनुभवी अधिकारी हैं, लेकिन RSS से उनका पुराना नाता रहा है।
ये घटना हाल ही में कांग्रेस के RSS पर हमलों के बाद आई है। पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने RSS को "विभाजनकारी" बताया था। ऐसे में, ये निलंबन कांग्रेस की "शब्दों से आगे एक्शन" की मिसाल लग रहा है।
बड़ा सवाल: सरकारी तटस्थता बनाम सांस्कृतिक अधिकार
भारत की राजनीति हमेशा से ध्रुवीकृत रही है। RSS खुद को सांस्कृतिक संगठन कहता है, जो हिंदू एकता पर जोर देता है। लेकिन आलोचक इसे BJP का वैचारिक आधार मानते हैं। प्रवीण कुमार का केस इसी टकराव को उजागर करता है।
- सरकारी पक्ष: कर्मचारी को नौकरी के दौरान राजनीति से दूर रहना चाहिए। ये नियम 1960 के कंडक्ट रूल्स से आता है।
- समर्थकों का तर्क: RSS कोई राजनीतिक पार्टी नहीं। ये व्यक्तिगत विश्वास का मामला है। निलंबन "अत्याचार" है।
- विपक्ष का एंगल: BJP ने इसे "कांग्रेस का RSS-विरोधी एजेंडा" बताया। कर्नाटक में BJP नेता बसवराज बोम्मई ने कहा, "ये हिंदू संगठनों को दबाने की साजिश है।"
ये मामला सिर्फ कर्नाटक तक सीमित नहीं। पूरे भारत में सरकारी कर्मचारियों की RSS या अन्य संगठनों से जुड़ाव पर सवाल उठ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी ऐसे मामलों में तटस्थता पर जोर दिया है। क्या प्रवीण कुमार कोर्ट जाएंगे? या ये निलंबन स्थायी हो जाएगा?
गाड़ा टाइम्स की नजर बनी हुई है। अगर आपको लगता है कि सरकारी नौकरी में विश्वास की आजादी होनी चाहिए, तो कमेंट्स में बताएं। ये बहस जारी रहेगी!
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