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नई दिल्ली: दोस्तों, तेल की दुनिया में एक बड़ा धमाका हो गया है! सऊदी अरब की दिग्गज कंपनी सऊदी अरामको और इराक की सरकारी ऑयल कंपनी SOMO ने भारत की नयारा एनर्जी को कच्चे तेल की सप्लाई बंद कर दी है। ये फैसला यूरोपीय यूनियन (ईयू) के नए प्रतिबंधों के बाद आया है, जो रूस से जुड़ी कंपनियों पर लगाए गए हैं। नयारा एनर्जी, जो गुजरात के वडिनार में बड़ी रिफाइनरी चलाती है, अब पूरी तरह रूसी तेल पर निर्भर हो गई है। ये खबर भारत के लिए चिंता की बात है, क्योंकि हमारी ऊर्जा सुरक्षा और तेल की कीमतें सीधे प्रभावित हो सकती हैं।
क्या है पूरा मामला? नयारा एनर्जी भारत की एक प्रमुख ऑयल रिफाइनिंग कंपनी है, जिसकी क्षमता रोजाना 4 लाख बैरल तेल रिफाइन करने की है। ये भारत की कुल रिफाइनिंग कैपेसिटी का करीब 8% हिस्सा है। लेकिन दिक्कत ये है कि कंपनी में रूसी ऑयल दिग्गज रोसनेफ्ट की बड़ी हिस्सेदारी है। जुलाई 2025 में ईयू ने नयारा पर प्रतिबंध लगा दिए, क्योंकि वो रूस से जुड़ी है और यूक्रेन युद्ध के बाद रूस पर पश्चिमी देशों के सैंक्शन चल रहे हैं। इन प्रतिबंधों की वजह से पेमेंट में दिक्कत आ रही है, और सऊदी-इराक जैसी कंपनियां रिस्क नहीं लेना चाहतीं।
अगस्त महीने में नयारा को सऊदी से एक भी बैरल तेल नहीं मिला, जबकि आमतौर पर हर महीने 10 लाख बैरल आते थे। इराक से भी 20 लाख बैरल की नियमित सप्लाई रुक गई। आखिरी शिपमेंट जुलाई में आई थी – इराकी बसरा क्रूड 29 जुलाई को और सऊदी अरब लाइट 18 जुलाई को। अब कंपनी 100% रूसी क्रूड पर चल रही है, जो 'डार्क फ्लीट' जहाजों से आ रहा है। ये वो जहाज हैं जो सैंक्शन से बचने के लिए इस्तेमाल होते हैं। लेकिन समस्या ये है कि रिफाइनरी अब सिर्फ 70-80% कैपेसिटी पर चल रही है, क्योंकि प्रोडक्ट्स बेचने और ट्रांसपोर्ट करने में मुश्किल हो रही है।
भारत पर क्या असर? भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है, और हमारी अर्थव्यवस्था कच्चे तेल की कीमतों पर बहुत निर्भर है। अगर नयारा जैसी कंपनियां मुश्किल में पड़ेंगी, तो घरेलू ईंधन उत्पादन प्रभावित हो सकता है। पहले से ही वैश्विक ऊर्जा संकट चल रहा है, रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से तेल कीमतें ऊपर-नीचे हो रही हैं। अगर भारत को ज्यादा रूसी तेल पर निर्भर रहना पड़ा, तो पश्चिमी सैंक्शन का असर हम पर भी पड़ सकता है। हाल ही में नयारा के सीईओ ने इस्तीफा दे दिया, और अब अजरबैजान की SOCAR से एक नए सीईओ को लाया गया है। रूसी दूतावास ने भी कन्फर्म किया कि रोसनेफ्ट से डायरेक्ट सप्लाई जारी है।
विशेषज्ञों का कहना है कि ये सैंक्शन भारत-रूस के रिश्तों को टेस्ट कर रहे हैं। भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा जरूरतें पूरी की हैं, लेकिन अब वैश्विक दबाव बढ़ रहा है। क्या भारत की सरकार इसमें दखल देगी? या नयारा को नए सप्लायर्स ढूंढने पड़ेंगे? ये देखना बाकी है। लेकिन इतना तय है कि तेल बाजार में उथल-पुथल जारी रहेगी, और आम आदमी को पेट्रोल-डीजल की कीमतों में उतार-चढ़ाव झेलना पड़ सकता है।
अगस्त महीने में नयारा को सऊदी से एक भी बैरल तेल नहीं मिला, जबकि आमतौर पर हर महीने 10 लाख बैरल आते थे। इराक से भी 20 लाख बैरल की नियमित सप्लाई रुक गई। आखिरी शिपमेंट जुलाई में आई थी – इराकी बसरा क्रूड 29 जुलाई को और सऊदी अरब लाइट 18 जुलाई को। अब कंपनी 100% रूसी क्रूड पर चल रही है, जो 'डार्क फ्लीट' जहाजों से आ रहा है। ये वो जहाज हैं जो सैंक्शन से बचने के लिए इस्तेमाल होते हैं। लेकिन समस्या ये है कि रिफाइनरी अब सिर्फ 70-80% कैपेसिटी पर चल रही है, क्योंकि प्रोडक्ट्स बेचने और ट्रांसपोर्ट करने में मुश्किल हो रही है।
भारत पर क्या असर? भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है, और हमारी अर्थव्यवस्था कच्चे तेल की कीमतों पर बहुत निर्भर है। अगर नयारा जैसी कंपनियां मुश्किल में पड़ेंगी, तो घरेलू ईंधन उत्पादन प्रभावित हो सकता है। पहले से ही वैश्विक ऊर्जा संकट चल रहा है, रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से तेल कीमतें ऊपर-नीचे हो रही हैं। अगर भारत को ज्यादा रूसी तेल पर निर्भर रहना पड़ा, तो पश्चिमी सैंक्शन का असर हम पर भी पड़ सकता है। हाल ही में नयारा के सीईओ ने इस्तीफा दे दिया, और अब अजरबैजान की SOCAR से एक नए सीईओ को लाया गया है। रूसी दूतावास ने भी कन्फर्म किया कि रोसनेफ्ट से डायरेक्ट सप्लाई जारी है।
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