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मंदिर में दलित दूल्हा-दुल्हन को एंट्री से रोका, पुजारी नहीं माने, पुलिस भी रही बेबस

 

caste discrimination,temple entry

20 मई 2025: देश में caste discrimination (जातिगत भेदभाव) की समस्या आज भी खत्म नहीं हुई है। हाल ही में एक ऐसा मामला सामने आया है, जहां एक दलित दूल्हा-दुल्हन मंदिर में दर्शन करने गए, लेकिन उन्हें अंदर एंट्री नहीं दी गई। इस घटना में पुजारी ने उन्हें रोकने से इनकार कर दिया, जबकि पुलिस ने भी काफी कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।
इस वीडियो में देखा जा सकता है कि दूल्हा-दुल्हन traditional dress (पारंपरिक परिधान) में मंदिर पहुंचे थे। उनके साथ कुछ और लोग भी थे, जो seemingly supportive (समर्थन करने वाले) लग रहे थे। लेकिन जैसे ही वे मंदिर के अंदर जाने लगे, पुजारी ने उन्हें रोक दिया। पुलिस भी मौके पर पहुंची और समझाने की कोशिश की, लेकिन पुजारी किसी भी सूरत में मानने को तैयार नहीं हुआ।
इस घटना ने एक बार फिर से caste-based discrimination (जातिगत भेदभाव) की समस्या को उजागर किया है। देश में ऐसे कई मामले सामने आते रहे हैं, जहां दलितों को मंदिरों में एंट्री से रोका जाता है, despite legal provisions (कानूनी प्रावधानों के बावजूद)। यह मामला Madhya Pradesh (मध्य प्रदेश) से सामने आया है, जहां local community (स्थानीय समुदाय) और religious practices (धार्मिक प्रथाओं) के बीच का टकराव साफ दिखाई देता है।
पुलिस की भूमिका और समाज की सोच
पुलिस ने इस मामले में intervene (हस्तक्षेप) करने की कोशिश की, लेकिन उनकी कोशिशें नाकाम रहीं। यह स्थिति दिखाती है कि कानून तो है, लेकिन समाज की मानसिकता में बदलाव लाना अभी भी एक बड़ी चुनौती है। कई बार such incidents (ऐसी घटनाएं) मीडिया और social media (सोशल मीडिया) पर वायरल हो जाती हैं, लेकिन ground reality (ज़मीनी हकीकत) में बहुत कम बदलाव होता है।
social activists (सामाजिक कार्यकर्ता) और legal experts (कानूनी विशेषज्ञ) का मानना है कि ऐसे मामलों में strict action (कठोर कार्रवाई) की ज़रूरत है। वे कहते हैं कि temple entry (मंदिर में एंट्री) का अधिकार हर नागरिक का है, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का क्यों न हो। लेकिन rural areas (ग्रामीण क्षेत्रों) में ऐसी प्रथाएं अभी भी जारी हैं, जो social harmony (सामाजिक सौहार्द) को प्रभावित करती हैं।
आखिर कब तक जारी रहेगी यह समस्या?
यह सवाल आज भी अनसुलझा है। जबकि सरकार ने कई कानून बनाए हैं, जैसे Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities) Act, लेकिन इनका सही से लागू होना अभी भी एक चुनौती है। ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है कि awareness campaigns (जागरूकता अभियान) और community involvement (समुदाय की भागीदारी) के ज़रिए इस समस्या से निपटा जा सके।

देखे सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो जहाँ दलित शादीशुदा जोड़े को मंदिर मे जाने से रोका जा रहा है 👉🏻


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