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कुवैत, नागरिकता संकट, मानवाधिकार |
कुवैत में एक चौंकाने वाला फैसला सामने आया है, जहां सरकार ने अगस्त 2024 से अब तक 37,000 से ज्यादा लोगों की नागरिकता छीन ली है। मार्च 2025 तक यह संख्या 42,000 तक पहुंच गई, और मई 2025 में भी सैकड़ों लोगों को बिना नागरिकता के छोड़ दिया गया। इस नीति ने न केवल कुवैत बल्कि पूरी दुनिया में मानवाधिकारों पर सवाल उठाए हैं। आइए, जानते हैं कि यह मामला क्या है और इसका लोगों पर क्या असर पड़ रहा है।
क्या है कुवैत का नागरिकता संकट? लोगों पर क्या असर पड़ा?
कुवैत के अमीर शेख मेशाल अल-अहमद अल-सबाह ने दिसंबर 2023 में सत्ता संभालने के बाद नागरिकता को लेकर सख्त नीति अपनाई। सरकार का कहना है कि यह कदम राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने और आर्थिक खर्चों को कम करने के लिए उठाया गया है। लेकिन इस नीति ने हजारों लोगों को रातोंरात बेनागरिक (stateless) बना दिया। खास तौर पर, शादी के जरिए नागरिकता पाने वाली 26,000 से ज्यादा महिलाएं, दोहरी नागरिकता वाले लोग और जिन पर धोखाधड़ी का आरोप है, वे इसकी चपेट में आए हैं। मशहूर पॉप सिंगर नवल द कुवैती और अभिनेता दाऊद हुसैन जैसे लोग भी इस नीति का शिकार हुए हैं।
नागरिकता छिनने का मतलब है कि लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं, शिक्षा, और सरकारी सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। कई लोगों के बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए हैं, ड्राइविंग लाइसेंस रद्द हो गए हैं, और बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं मिल रहा। एक महिला, लामा, ने बताया कि उनकी क्रेडिट कार्ड पेमेंट तक रुक गई। रिटायर्ड सरकारी कर्मचारियों की पेंशन भी छह महीने से बंद है। यह नीति खासकर बिदून समुदाय को प्रभावित कर रही है, जो पहले से ही कुवैत में बिना नागरिकता के जीवन जी रहे हैं।
सरकार का तर्क और आलोचना, अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
कुवैत सरकार का कहना है कि यह नीति विदेशी अपराधियों को रोकने और राष्ट्रीय संसाधनों की रक्षा के लिए है। दिसंबर 2024 में एक कानून पास किया गया, जिसमें "नैतिक भ्रष्टाचार, बेईमानी, या राज्य की सुरक्षा को खतरा" जैसे कारणों से नागरिकता छीनी जा सकती है। लेकिन मानवाधिकार संगठन, जैसे एमनेस्टी इंटरनेशनल, ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति सत्ता को मजबूत करने और विपक्ष को दबाने की कोशिश है, खासकर तब जब अमीर ने दिसंबर 2023 में संसद भंग कर दी थी।
दुनियाभर में इस नीति की आलोचना हो रही है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर 22 मई 2025 को
@Fahad_Alali1960
ने इसे मानवीय संकट बताया, जिसमें 1,292 लोगों की नागरिकता एक ही दिन में छीनी गई। एमनेस्टी की मंसूरी मिल्स ने कहा कि नागरिकता का अधिकार बुनियादी मानवाधिकार है, और इस नीति ने हजारों लोगों को अनिश्चितता में धकेल दिया है।कुवैत की यह नीति न केवल वहां के लोगों के लिए बल्कि वैश्विक स्तर पर भी चिंता का विषय है। यह मामला मानवाधिकार, राष्ट्रीय पहचान, और सरकार की जवाबदेही जैसे मुद्दों को उजागर करता है। क्या कुवैत अपनी नीति पर पुनर्विचार करेगा, या यह संकट और गहराएगा? यह सवाल अभी अनुत्तरित है।
गाड़ा टाइम्स इस मुद्दे पर नजर रखे हुए है और आपको हर अपडेट देता रहेगा। अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताएं!
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