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श्रीलंका, भारत, भूमि संपर्क |
कोलंबो: श्रीलंका ने भारत के उस महत्वाकांक्षी प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है, जिसमें दोनों देशों को सड़क और रेल मार्ग से जोड़ने की योजना थी। इस प्रस्ताव के तहत भारत ने रामेश्वरम (तमिलनाडु) और तलाइमन्नार (श्रीलंका) के बीच एक पुल या सुरंग के निर्माण का सुझाव दिया था, जिससे दक्षिण एशिया में व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिल सके। लेकिन श्रीलंका ने इस परियोजना को फिलहाल स्वीकार करने से इनकार कर दिया है, जिसके पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं।
पिछले कुछ वर्षों में भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों में काफी सुधार देखा गया है। भारत ने श्रीलंका को आर्थिक संकट, कोविड महामारी और अन्य चुनौतियों के दौरान सहायता प्रदान की है। हाल ही में अप्रैल 2025 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की श्रीलंका यात्रा के दौरान दोनों देशों ने रक्षा, ऊर्जा और डिजिटल सहयोग जैसे क्षेत्रों में सात समझौतों पर हस्ताक्षर किए। इस दौरान मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति अनुरा कुमारा दिसानायके के साथ मुलाकात की और इस परियोजना का प्रस्ताव रखा। लेकिन श्रीलंका ने इसे स्वीकार करने से पहले और विचार-विमर्श की आवश्यकता बताई।
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परिवहन गलियारा, रामेश्वरम |
श्रीलंका का कहना है कि वह अभी इस तरह की बड़ी भूमि संपर्क परियोजना के लिए तैयार नहीं है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहले, इस परियोजना की व्यवहार्यता को लेकर श्रीलंका में चिंताएं हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि पाल्क स्ट्रेट में पुल या सुरंग का निर्माण पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील हो सकता है। इस क्षेत्र में प्रवाल भित्तियाँ (कोरल रीफ्स), मछली प्रजनन क्षेत्र और प्रवासी पक्षियों के आवास को नुकसान पहुँचने की आशंका है। इसके अलावा, इस परियोजना को लेकर श्रीलंका में जनता के बीच भी विरोध की संभावना है, क्योंकि कई लोग इसे अपनी सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर के लिए खतरा मानते हैं।
दूसरा कारण भू-राजनीतिक हो सकता है। श्रीलंका, भारत और चीन के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। चीन ने श्रीलंका में बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) के तहत कई बड़े बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में निवेश किया है, जैसे कि हंबनटोटा बंदरगाह। भारत इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने के लिए इस तरह की परियोजनाओं को बढ़ावा दे रहा है, लेकिन श्रीलंका शायद दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ाने से बचना चाहता है। हाल ही में श्रीलंका ने भारत के तेजस एमके-1 लड़ाकू विमान खरीदने से भी इनकार किया, जिसे भारत के लिए एक झटके के रूप में देखा गया।
तीसरा, श्रीलंका की आर्थिक स्थिति भी इस निर्णय में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हाल के वर्षों में देश ने गंभीर आर्थिक संकट का सामना किया है, और इस तरह की महंगी परियोजना को शुरू करने के लिए संसाधनों की कमी हो सकती है। श्रीलंका सरकार का ध्यान अभी आर्थिक सुधार और जन कल्याण पर केंद्रित है।
हालांकि, इस निर्णय का मतलब यह नहीं है कि भारत और श्रीलंका के बीच सहयोग पूरी तरह रुक गया है। दोनों देश रेलवे आधुनिकीकरण, सौर ऊर्जा परियोजनाओं और त्रिंकोमाली को ऊर्जा केंद्र के रूप में विकसित करने जैसे क्षेत्रों में मिलकर काम कर रहे हैं। भारत ने श्रीलंका के उत्तरी क्षेत्र में रेल संपर्क को मजबूत करने के लिए 91.27 मिलियन डॉलर की सहायता से महो-ओमान्थाई रेलवे लाइन का नवीनीकरण किया है। इसके अलावा, भारत, श्रीलंका और संयुक्त अरब अमीरात के बीच त्रिपक्षीय समझौता भी हुआ है, जिसके तहत त्रिंकोमाली में एक ऊर्जा केंद्र विकसित किया जाएगा।
इस प्रस्ताव को ठुकराने से भारत-श्रीलंका संबंधों पर तत्काल कोई बड़ा असर पड़ने की संभावना नहीं है, लेकिन यह दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय संपर्क के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर को टालने जैसा है। भविष्य में दोनों देश इस परियोजना पर फिर से विचार कर सकते हैं, बशर्ते पर्यावरणीय और आर्थिक चिंताओं का समाधान हो।
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