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मेरठ समाचार,ईद 2025,सड़कों पर नमाज़,धार्मिक स्वतंत्रता |
मेरठ, 2 अप्रैल 2025: उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में ईद के मौके पर एक बार फिर से सड़कों पर नमाज़ को लेकर विवाद सुर्खियों में आ गया है। इस बार मामला तब गरमाया जब कुछ लोगों ने एक पोस्टर लहराया, जिसके बाद पुलिस ने "अज्ञात" नमाजियों के खिलाफ FIR दर्ज कर ली। इस घटना ने धार्मिक स्वतंत्रता और सड़कों पर धार्मिक आयोजनों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। आइए जानते हैं कि आखिर क्या है पूरा मामला और क्यों हो रहा है इसकी चर्चा।
पोस्टर पर क्या लिखा था?
मेरठ में ईद की नमाज़ के बाद कुछ लोगों ने एक पोस्टर प्रदर्शित किया, जिसमें लिखा था- "सिर्फ मुस्लिम ही सड़क पर नमाज़ नहीं पढ़ते।" इस पोस्टर में उन हिंदू त्योहारों और धार्मिक आयोजनों की सूची भी दी गई थी, जो सड़कों पर आयोजित होते हैं। पोस्टर का मकसद शायद यह दिखाना था कि सड़कों पर धार्मिक आयोजन सिर्फ एक समुदाय तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह सभी समुदायों का हिस्सा है। लेकिन इस पोस्टर ने माहौल को गरमा दिया और पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए अज्ञात लोगों के खिलाफ FIR दर्ज कर ली।
पहले से ही सख्त हैं नियम
यह पहली बार नहीं है जब मेरठ में सड़कों पर नमाज़ को लेकर विवाद हुआ हो। इससे पहले 2023 में भी मेरठ पुलिस ने सड़कों पर नमाज़ पढ़ने पर रोक लगाने के लिए नोटिस जारी किए थे। उस दौरान ईदगाह पर करीब 60,000 नमाजियों ने नमाज़ अदा की थी और भारी पुलिस बल तैनात किया गया था। हाल ही में, 30 मार्च 2025 को मेरठ के पुलिस अधीक्षक अयुष विक्रम सिंह ने साफ तौर पर चेतावनी दी थी कि सड़कों पर नमाज़ पढ़ने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी, जिसमें पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने जैसी सजा भी शामिल हो सकती है।
सोशल मीडिया पर बहस तेज
इस घटना के बाद सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर भी बहस छिड़ गई।
@AshrafFem
नाम के एक यूजर ने इस घटना की जानकारी साझा करते हुए पोस्ट किया, जिसके बाद कई लोगों ने अपनी राय दी। एक यूजर @taslimasayyed
ने लिखा, "इतना है तो हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई सबके गवर्नमेंट में आना चाहिए, मुसलमान का क्यों?" वहीं, @Mozammilhayat24
ने कहा, "ये तो होना ही था, मुसलमान पर चील की निगाह रहती है।" कुछ लोगों ने इस पोस्टर को सही ठहराया, तो कुछ ने इसे गलत करार दिया।क्या कहते हैं नियम?
भारत में सड़कों पर धार्मिक आयोजनों को लेकर सख्त नियम हैं। मिनिस्ट्री ऑफ रोड ट्रांसपोर्ट एंड हाइवे के अनुसार, सड़कों का इस्तेमाल मुख्य रूप से परिवहन और आवागमन के लिए होना चाहिए। हालांकि, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत लोग अपनी परंपराओं का पालन करते हैं, लेकिन जब यह सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा डालता है, तो प्रशासन को हस्तक्षेप करना पड़ता है। मेरठ में भी प्रशासन का कहना है कि सड़कों पर नमाज़ से ट्रैफिक और आम लोगों को परेशानी होती है, इसलिए इसे मस्जिदों और ईदगाहों तक सीमित रखने के निर्देश दिए गए हैं।
धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल
इस घटना ने एक बार फिर धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं। प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में ज्यादातर लोग धार्मिक सहिष्णुता को अपनी पहचान का हिस्सा मानते हैं। लेकिन सड़कों पर नमाज़ या अन्य धार्मिक आयोजनों को लेकर बार-बार होने वाले विवाद इस सहिष्णुता पर सवाल उठाते हैं। सपा सांसद इकरा हसन ने इस मुद्दे पर सरकार से सवाल किया था, "10 मिनट की ईद की नमाज़ से सरकार को इतनी परेशानी क्यों है?"
क्या है समाधान?
इस तरह के विवादों से बचने के लिए जरूरी है कि सभी समुदायों के बीच संवाद बढ़ाया जाए। प्रशासन को भी चाहिए कि वह सख्ती के साथ-साथ संवेदनशीलता दिखाए और धार्मिक आयोजनों के लिए वैकल्पिक व्यवस्था करे। वहीं, लोगों को भी चाहिए कि वे सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल करते समय दूसरों की सुविधा का ध्यान रखें।
आपकी राय क्या है?
मेरठ में हुए इस ताजा विवाद ने एक बार फिर हमें सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या धार्मिक स्वतंत्रता और सार्वजनिक व्यवस्था के बीच संतुलन बनाना इतना मुश्किल है? आप इस बारे में क्या सोचते हैं? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताएं।
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