"मेरठ CCS यूनिवर्सिटी की बहादुरी: परम्परागत मुसलमानों का ईद मिलन समारोह रद्द, विनीत गुर्जर छात्र नेता की हनुमान चालीसा पढ़ने की धमकी के आगे हार मान ली!"
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मेरठ, चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी |
मेरठ की चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी (CCSU) में इस बार एक 22 साल पुरानी परंपरा टूट गई। हर साल उर्दू विभाग के लॉन में 7 अप्रैल को आयोजित होने वाला ईद मिलन समारोह इस बार रद्द कर दिया गया। वजह? एक छात्र नेता की धमकी और यूनिवर्सिटी प्रशासन की उस धमकी के आगे झुकने की मजबूरी। यह घटना न सिर्फ यूनिवर्सिटी की सोच पर सवाल खड़े करती है, बल्कि देश के उन चुनिंदा विश्वविद्यालयों की मानसिकता को भी उजागर करती है जो NAAC++ का दर्जा पाकर भी अपनी सोच को विस्तार नहीं दे पाए।
क्या हुआ था?
उर्दू विभाग ने 7 अप्रैल की शाम को ईद मिलन समारोह का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होने वाली थीं। प्रो-वाइस चांसलर, रजिस्ट्रार और कई अन्य बड़े अधिकारियों को भी निमंत्रण भेजा गया था। सैकड़ों लोगों को ससम्मान आमंत्रित किया गया था। लेकिन आयोजन से तीन दिन पहले एक कथित वरिष्ठ छात्र नेता विनीत चपराना ने इसका विरोध कर दिया। चपराना ने सोशल मीडिया पर वीडियो और टेक्स्ट के जरिए धमकी दी कि अगर यह कार्यक्रम हुआ तो वह आयोजन स्थल पर जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे।
उर्दू विभाग ने 7 अप्रैल की शाम को ईद मिलन समारोह का आयोजन किया था। इस कार्यक्रम में यूनिवर्सिटी की कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल होने वाली थीं। प्रो-वाइस चांसलर, रजिस्ट्रार और कई अन्य बड़े अधिकारियों को भी निमंत्रण भेजा गया था। सैकड़ों लोगों को ससम्मान आमंत्रित किया गया था। लेकिन आयोजन से तीन दिन पहले एक कथित वरिष्ठ छात्र नेता विनीत चपराना ने इसका विरोध कर दिया। चपराना ने सोशल मीडिया पर वीडियो और टेक्स्ट के जरिए धमकी दी कि अगर यह कार्यक्रम हुआ तो वह आयोजन स्थल पर जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे।
इस धमकी के बाद यूनिवर्सिटी प्रशासन डर गया। उर्दू विभाग के हेड प्रोफेसर असलम जमशेदपुरी पर दबाव डाला गया कि वह इस आयोजन को रद्द कर दें। आखिरकार, मजबूरन कार्यक्रम रद्द करना पड़ा। लेकिन सवाल यह है कि क्या एक छात्र की धमकी के आगे इतना बड़ा विश्वविद्यालय झुक सकता है? क्या यही उसकी सहिष्णुता और समझदारी का पैमाना है?
होली मिलन समारोह पर चुप्पी क्यों?
यहां एक और बात गौर करने वाली है। उर्दू विभाग ने कुछ दिन पहले होली मिलन समारोह का आयोजन भी किया था। उस वक्त न तो विनीत चपराना ने कोई धमकी दी और न ही यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इसे रोकने की कोशिश की। फिर ईद मिलन समारोह के साथ ही इतना बवाल क्यों? क्या यह सिर्फ धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं है? यह सवाल हर उस शख्स के मन में उठ रहा है जो इस घटना से वाकिफ है।
यहां एक और बात गौर करने वाली है। उर्दू विभाग ने कुछ दिन पहले होली मिलन समारोह का आयोजन भी किया था। उस वक्त न तो विनीत चपराना ने कोई धमकी दी और न ही यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इसे रोकने की कोशिश की। फिर ईद मिलन समारोह के साथ ही इतना बवाल क्यों? क्या यह सिर्फ धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं है? यह सवाल हर उस शख्स के मन में उठ रहा है जो इस घटना से वाकिफ है।
सोच का दायरा कितना बड़ा?
चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी देश के उन चुनिंदा विश्वविद्यालयों में से एक है, जिसे NAAC++ का दर्जा प्राप्त है। लेकिन इस घटना ने यह साबित कर दिया कि दर्जा बढ़ने से कुछ नहीं होता, असल मायने रखता है सोच का दायरा। अगर एक विश्वविद्यालय धार्मिक समारोहों को लेकर इतना संकीर्ण रवैया अपनाएगा, तो वह अपने छात्रों को क्या सिखाएगा? क्या यही एकता और भाईचारे का संदेश है, जो एक शिक्षण संस्थान को देना चाहिए?
चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी देश के उन चुनिंदा विश्वविद्यालयों में से एक है, जिसे NAAC++ का दर्जा प्राप्त है। लेकिन इस घटना ने यह साबित कर दिया कि दर्जा बढ़ने से कुछ नहीं होता, असल मायने रखता है सोच का दायरा। अगर एक विश्वविद्यालय धार्मिक समारोहों को लेकर इतना संकीर्ण रवैया अपनाएगा, तो वह अपने छात्रों को क्या सिखाएगा? क्या यही एकता और भाईचारे का संदेश है, जो एक शिक्षण संस्थान को देना चाहिए?
इस घटना ने आजादी के दौर की मेरठ की मशहूर तवायफ गुलाबजान कश्मीरी की उन पंक्तियों को फिर से याद दिला दिया, जो उन्होंने उस वक्त की संकीर्ण सोच के खिलाफ लिखी थीं-
"रकवा तुम्हारे खेतों का मीलों हुआ तो क्या,
रकवा तुम्हारे दिल का दो इंच भी नहीं।"
"रकवा तुम्हारे खेतों का मीलों हुआ तो क्या,
रकवा तुम्हारे दिल का दो इंच भी नहीं।"
गुलाबजान की यह पंक्तियां आज भी उतनी ही सटीक लगती हैं। मेरठ, जो कभी आजादी की क्रांति का गवाह रहा, वहां की एक यूनिवर्सिटी का ऐसा रवैया वाकई निराश करता है।
सवाल बाकी है...
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी शिक्षण संस्थाएं वाकई में सभी धर्मों और संस्कृतियों को बराबर सम्मान दे पा रही हैं? क्या एक धमकी के आगे झुक जाना ही हमारी सहिष्णुता का पैमाना है? चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी को इस घटना से सबक लेना चाहिए और भविष्य में ऐसे आयोजनों को बिना किसी डर के आयोजित करने की हिम्मत दिखानी चाहिए। आखिर, एक विश्वविद्यालय का काम सिर्फ डिग्री देना नहीं, बल्कि समाज को एक बेहतर दिशा देना भी है।
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारी शिक्षण संस्थाएं वाकई में सभी धर्मों और संस्कृतियों को बराबर सम्मान दे पा रही हैं? क्या एक धमकी के आगे झुक जाना ही हमारी सहिष्णुता का पैमाना है? चौधरी चरण सिंह यूनिवर्सिटी को इस घटना से सबक लेना चाहिए और भविष्य में ऐसे आयोजनों को बिना किसी डर के आयोजित करने की हिम्मत दिखानी चाहिए। आखिर, एक विश्वविद्यालय का काम सिर्फ डिग्री देना नहीं, बल्कि समाज को एक बेहतर दिशा देना भी है।
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