सहारनपुर में दलित-मुस्लिम तनाव : बकरा ईद पर ईद मनाने व नमाज़ पढ़ने का करेंगे विरोध : भीम आर्मी रकम सिंह
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आलमपुर,दलित-मुस्लिम |
सहारनपुर: उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले की बेहट विधानसभा के गाँव आलमपुर में दलित समाज की एक बारात को लेकर हुए विवाद ने सामाजिक तनाव को जन्म दे दिया है। इस घटना में गाँव के मुस्लिम समुदाय और दलित बारातियों के बीच झड़प की खबरें सामने आई हैं, जिसके बाद सोशल मीडिया पर दोनों समुदायों के बीच तीखी बहस छिड़ गई है। इस बीच, समाजसेवी और स्थानीय लोग शांति और भाईचारे की अपील कर रहे हैं, लेकिन कुछ बयान और सोशल मीडिया पोस्ट ने मामले को और जटिल बना दिया है।
क्या है पूरा मामला?
18 अप्रैल, 2025 को आलमपुर गाँव में एक दलित दूल्हे की बारात निकल रही थी। इस दौरान दोनों समुदायों के युवा डीजे पर नाचते हुए आनंद ले रहे थे। लेकिन डीजे पर मनपसंद गाने को बदलने को लेकर कुछ लोगों के बीच कहासुनी शुरू हुई, जो देखते ही देखते मारपीट में बदल गई। दलित समुदाय के लोगों का आरोप है कि मुस्लिम समुदाय के कुछ असामाजिक तत्वों ने बारातियों के साथ मारपीट की और उनकी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया। इस घटना में कई लोग घायल हुए, और पुलिस ने एससी-एसटी एक्ट के तहत 12 नामजद और कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। अब तक छह लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
18 अप्रैल, 2025 को आलमपुर गाँव में एक दलित दूल्हे की बारात निकल रही थी। इस दौरान दोनों समुदायों के युवा डीजे पर नाचते हुए आनंद ले रहे थे। लेकिन डीजे पर मनपसंद गाने को बदलने को लेकर कुछ लोगों के बीच कहासुनी शुरू हुई, जो देखते ही देखते मारपीट में बदल गई। दलित समुदाय के लोगों का आरोप है कि मुस्लिम समुदाय के कुछ असामाजिक तत्वों ने बारातियों के साथ मारपीट की और उनकी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया। इस घटना में कई लोग घायल हुए, और पुलिस ने एससी-एसटी एक्ट के तहत 12 नामजद और कुछ अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है। अब तक छह लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है।
सोशल मीडिया पर तनाव और विवादास्पद बयान
घटना के बाद सोशल मीडिया पर दोनों समुदायों के बीच तीखी बहस शुरू हो गई। कुछ दलित समुदाय के लोगों ने मुस्लिम समुदाय के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियाँ कीं, वहीं मुस्लिम समुदाय ने भी जवाबी हमले किए। इस बीच, डॉ. अम्बेडकर समर्थक और जिला पंचायत सदस्य रकम सिंह ने एक फेसबुक पोस्ट में विवादास्पद बयान दिया। उन्होंने लिखा, "अगर मुस्लिम समाज दलित समाज की बारात रोकता है, तो आने वाले समय में बकरीद और ईद की नमाज़ को लेकर ऐतराज़ जताया जाएगा।" इस बयान ने सोशल मीडिया पर और तनाव बढ़ा दिया।समाजसेवी एहताशम गाड़ा ने रकम सिंह से इस मुद्दे पर बात की और कहा, "अगर बात बारात की है, तो इसे बारात तक ही रखें। इसे हमारी आस्था से क्यों जोड़ रहे हैं? मुस्लिम समाज ने कभी भी भीम जयंती का विरोध नहीं किया। हम दलित समाज के हर तरह से साथ हैं।"
इसके जवाब में रकम सिंह ने स्पष्ट किया कि उनका बयान गलत समझा गया। उन्होंने एहताशम से कहा, "जैसे आपको अपने मुस्लिम समाज की चिंता है, वैसे ही मुझे अपने समाज की चिंता है। मुझे समाज के लोगों के कई कॉल आए, जिसके बाद मैंने यह पोस्ट की। मेरा कहना था कि अगर किसी गाँव में मुस्लिम समाज दलितों के साथ ज़्यादती करता है, तो उस गाँव में ऐसा कदम उठाया जा सकता है। लेकिन अगर हम पर ज़ुल्म होगा, तो क्या जिहाद हमारा फ़र्ज़ नहीं है?"
भाईचारे की अपील और एकता का प्रयास
एहताशम गाड़ा और एडवोकेट इंतखाब आज़ाद ने दोनों समुदायों से शांति बनाए रखने और भाईचारा कायम करने की अपील की है। एहताशम ने कहा, "अगर दिमाग होगा तो सब समझ आ जाएगा। हमारे लोग जज़्बात में आकर अनाप-शनाप बोलते हैं। 2014 से पहले हिंदू समाज मुस्लिमों को भरपूर वोट देता था, लेकिन सांसद इमरान मसूद के 'बोटी-बोटी' बयान ने हिंदू-मुस्लिम एकता में जहर घोल दिया। अब दलित समाज को भी खिलाफ करना चाहते हो? जिस दिन दलित हिंदू हो गया, उस दिन तुम कहीं नहीं टिक पाओगे।"उन्होंने मुस्लिम समुदाय की मौजूदा स्थिति पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा, "वक्फ चला गया, अज़ान चली गई, ईद और जुमे की नमाज़ पर पाबंदी है। मुस्लिम अपनी शिनाख्त छुपाकर ट्रेन में सफर कर रहे हैं। अभी भी वक्त है, समझ जाओ।"
एहताशम ने आगे बताया कि जल्द ही माजिद गाड़ा की अगुवाई में 20 से 25 मुस्लिम समुदाय के लोगों का एक डेलिगेशन बनाया जाएगा, जो दलित समाज के लोगों से मिलकर एकता का संदेश देगा। उन्होंने कहा, "हम जो मुकदमे हुए हैं, उन्हें आपसी सहमति से निपटाने की कोशिश करेंगे। एकता के दुश्मनों को हरगिज़ कामयाब नहीं होने देंगे।"
मुस्लिम समुदाय का जवाब
मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने एहताशम और इंतखाब की अपील पर सवाल उठाए। उनका कहना है, "क्या सारा भाईचारा सिर्फ मुस्लिमों को ही निभाना है? हमारे गाँव में हम पर मारपीट हुई, एससी-एसटी एक्ट के तहत एफआईआर हुई। अब हम भाईचारा कैसे निभाएँ?" सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट में यह भी दावा किया गया कि भीम आर्मी और सांसद चंद्रशेखर रावण के करीबियों ने मुस्लिम समुदाय को धमकी दी कि अगर बारात में दिक्कत हुई तो "ईद की नमाज़ और ईद का त्योहार नहीं मना पाओगे।"
मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों ने एहताशम और इंतखाब की अपील पर सवाल उठाए। उनका कहना है, "क्या सारा भाईचारा सिर्फ मुस्लिमों को ही निभाना है? हमारे गाँव में हम पर मारपीट हुई, एससी-एसटी एक्ट के तहत एफआईआर हुई। अब हम भाईचारा कैसे निभाएँ?" सोशल मीडिया पर कुछ पोस्ट में यह भी दावा किया गया कि भीम आर्मी और सांसद चंद्रशेखर रावण के करीबियों ने मुस्लिम समुदाय को धमकी दी कि अगर बारात में दिक्कत हुई तो "ईद की नमाज़ और ईद का त्योहार नहीं मना पाओगे।"
पुलिस और प्रशासन की कार्रवाई
सहारनपुर पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए त्वरित कार्रवाई की है। सीओ बेहट और मिर्ज़ापुर थाना प्रभारी ने घटनास्थल का दौरा किया और पीड़ितों के बयान दर्ज किए। पुलिस ने ट्वीट कर जानकारी दी कि एससी-एसटी एक्ट और अन्य धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है, और छह आरोपियों को हिरासत में लिया गया है।
सहारनपुर पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए त्वरित कार्रवाई की है। सीओ बेहट और मिर्ज़ापुर थाना प्रभारी ने घटनास्थल का दौरा किया और पीड़ितों के बयान दर्ज किए। पुलिस ने ट्वीट कर जानकारी दी कि एससी-एसटी एक्ट और अन्य धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है, और छह आरोपियों को हिरासत में लिया गया है।
क्या कहते हैं स्थानीय लोग?
गाँव के कुछ बुजुर्गों का कहना है कि आलमपुर में पहले कभी ऐसा तनाव नहीं देखा गया। एक बुजुर्ग ने बताया, "हमारे गाँव में हिंदू, मुस्लिम, दलित सब मिलजुल कर रहते थे। ये झगड़ा कुछ असामाजिक तत्वों की करतूत है।" वहीं, कुछ युवाओं का मानना है कि सोशल मीडिया ने छोटी सी घटना को तूल दे दिया।
गाँव के कुछ बुजुर्गों का कहना है कि आलमपुर में पहले कभी ऐसा तनाव नहीं देखा गया। एक बुजुर्ग ने बताया, "हमारे गाँव में हिंदू, मुस्लिम, दलित सब मिलजुल कर रहते थे। ये झगड़ा कुछ असामाजिक तत्वों की करतूत है।" वहीं, कुछ युवाओं का मानना है कि सोशल मीडिया ने छोटी सी घटना को तूल दे दिया।
यह घटना एक बार फिर सामाजिक एकता की नाजुक स्थिति को उजागर करती है। समाजसेवी और प्रशासन दोनों इस मामले को शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाने की कोशिश में जुटे हैं। लेकिन सोशल मीडिया पर चल रही बहस और भड़काऊ बयानबाज़ी स्थिति को और बिगाड़ सकती है। ऐसे में दोनों समुदायों के नेताओं और प्रभावशाली लोगों की ज़िम्मेदारी है कि वे जज़्बात को काबू में रखें और भाईचारे को बढ़ावा दें।
सवाल यह है कि क्या आलमपुर का यह विवाद शांति से सुलझ पाएगा, या यह और गहराएगा? समय ही इसका जवाब देगा।
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