मुस्लिम वैज्ञानिकों की अनदेखी विरासत: कैसे इस्लामी सभ्यता ने आधुनिक दुनिया गढ़ी, लेकिन इतिहास ने किया नज़रअंदाज!"
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नई दिल्ली, 13 मार्च 2025: आज हम एक ऐसी सच्चाई से रूबरू हो रहे हैं, जो इतिहास की किताबों में शायद ही पूरी तरह उजागर हुई हो। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक वायरल थ्रेड ने इस बात को हाईलाइट किया है कि कैसे मुस्लिम वैज्ञानिकों और विद्वानों ने आधुनिक दुनिया की नींव रखी, लेकिन यूरोसेंट्रिक नजरिए ने इन योगदानों को बार-बार नज़रअंदाज किया है। यह खुलासा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करता है कि क्या हमने इतिहास को सही ढंग से समझा है?
अल-ख्वारिज़्मी से अल-ज़हरावी तक: गणित, चिकित्सा और तकनीक में क्रांति
एक्स पर प्रसिद्ध उपयोगकर्ता
@7signxx
ने एक शानदार थ्रेड साझा किया, जिसमें दावा किया गया कि बिना मुस्लिम योगदानों के आज की आधुनिक दुनिया की कल्पना भी नहीं की जा सकती। 9वीं सदी के महान गणितज्ञ अल-ख्वारिज़्मी, जिन्हें 'बीजगणित' (एलजेब्रा) का जनक माना जाता है, ने गणित और तकनीक की बुनियाद रखी। उनके काम के बिना आज के कंप्यूटर, इंजीनियरिंग और भौतिकी जैसी विधाएं संभव नहीं थीं। इसके अलावा, अल-ज़हरावी, जिन्हें आधुनिक सर्जरी का पिता कहा जाता है, ने 200 से अधिक सर्जिकल उपकरणों का डिज़ाइन किया, जो आज भी उपयोग में हैं। कैमरे की नींव रखने वाले इब्न अल-हय्थम और सार्वजनिक अस्पतालों की शुरुआत करने वाले मुस्लिम विद्वानों ने भी विज्ञान और चिकित्सा में क्रांतिकारी बदलाव लाए।कॉफी से लेकर कैमरों तक: रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इस्लामी प्रभाव
थ्रेड में यह भी बताया गया कि 15वीं सदी में यमन में मुस्लिमों द्वारा लोकप्रिय बनाई गई कॉफी आज दुनिया की पसंदीदा ड्रिंक बन गई है। स्टारबक्स और एक्सप्रेसो जैसी कॉफी संस्कृति के पीछे भी इस्लामी सभ्यता का हाथ है। यह दावा हैरान करने वाला है, लेकिन सच्चाई यह है कि इन योगदानों को यूरोसेंट्रिक नजरिए के कारण अक्सर भुला दिया गया। थ्रेड में सवाल उठाया गया, "क्या इन योगदानों को इतिहास से मिटा दिया गया क्योंकि यूरोपीय इतिहासकारों ने अपनी प्रभुता को बढ़ावा देना चाहा?"
यूरोसेंट्रिज़्म का साया: इतिहास में सच्चाई की अनदेखी
@7signxx
के पोस्ट में यह भी जोर दिया गया कि इस्लामी सभ्यता ने गणित, चिकित्सा, प्रकाशिकी और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में जो योगदान दिए, उन्हें जानबूझकर कम आंका गया। वेब खोज परिणामों से पता चलता है कि 18वीं और 19वीं सदी में यूरोपीय इतिहासकारों ने अपनी प्रभुता स्थापित करने के लिए एक यूरोसेंट्रिक नजरिया अपनाया, जिसमें गैर-यूरोपीय योगदानों को नज़रअंदाज किया गया। यह न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि यह भी सवाल खड़ा करता है कि क्या हमने सही इतिहास पढ़ा है या नहीं।भारत के लिए सबक: विविधता को पहचानें
भारत, जहां विविध संस्कृतियों और सभ्यताओं का संगम है, इस खुलासे से प्रेरणा ले सकता है। हमारे देश में भी इस्लामी विद्वानों और वैज्ञानिकों के योगदानों को उजागर करने की जरूरत है, जो न केवल विज्ञान और तकनीक में, बल्कि कला, साहित्य और वास्तुकला में भी गहरे प्रभाव छोड़ गए हैं। यह समय है कि हम इतिहास को फिर से लिखें और हर सभ्यता को उसका हक दें।
सोशल मीडिया पर हलचल: यूजर्स की प्रतिक्रियाएं
@7signxx
के थ्रेड ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया है। कुछ यूजर्स ने इसे "मशाल्लाह" कहकर सराहा, जबकि अन्य ने सवाल उठाए कि क्या यह दावा सही है। एक यूजर ने लिखा, "अगर मुस्लिम योगदान नहीं होते, तो आज की तकनीकी दुनिया की कल्पना भी नहीं की जा सकती।" दूसरी ओर, कुछ यूजर्स ने यूरोपीय योगदानों को प्राथमिकता देने की बात कही, जिससे बहस और तेज हो गई।निष्कर्ष: समय है सच को स्वीकार करने का
यह थ्रेड न केवल इतिहास की एक नई परत खोलता है, बल्कि यह भी याद दिलाता है कि सच्चाई को स्वीकार करने और हर सभ्यता के योगदान को मान्यता देने का समय आ गया है। क्या हम इस बदलाव के लिए तैयार हैं? यह सवाल हर भारतीय और वैश्विक नागरिक के लिए है। इस्लामी सभ्यता के योगदानों को फिर से उजागर करना, न केवल न्याय है, बल्कि यह भविष्य के लिए एक सबक भी है।
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