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वक्फ बिल,मेरठ,मुस्लिम समुदाय |
मेरठ: वक्फ (संशोधन) बिल 2024 के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की अपील पर अलविदा जुम्मा की नमाज के दौरान काली पट्टी बांधकर विरोध करने की कोशिश कर रहे मुस्लिम समुदाय के लोगों को मेरठ में पुलिस ने रोक दिया। शुक्रवार को मेरठ की सड़कों पर तनाव का माहौल देखा गया, जब पुलिस ने नमाज के लिए जा रहे लोगों से उनकी काली पट्टियां उतरवा दीं। इस घटना ने स्थानीय मुस्लिम समुदाय में नाराजगी पैदा कर दी है।
AIMPLB ने देशभर के मुसलमानों से अपील की थी कि वे रमजान के आखिरी जुम्मे, यानी जुमातुल विदा (अलविदा जुम्मा) के दिन मस्जिद जाते वक्त काली पट्टी बांधकर वक्फ बिल के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध दर्ज करें। बोर्ड का कहना है कि यह बिल मुस्लिम समुदाय की मस्जिदों, ईदगाहों, मदरसों, दरगाहों और कब्रिस्तानों को छीनने की "साजिश" है। लेकिन मेरठ में पुलिस ने इस विरोध को सख्ती से दबाने की कोशिश की।
क्या हुआ मेरठ में?
शुक्रवार को मेरठ की एक तंग गली में पुलिस और स्थानीय लोगों के बीच तनाव देखा गया। सोशल मीडिया पर वायरल एक तस्वीर में साफ दिख रहा है कि पुलिसकर्मी, जिनमें कुछ सैन्य वर्दी में थे, उन लोगों को रोक रहे थे जो काली पट्टी बांधकर नमाज के लिए जा रहे थे। तस्वीर में कुछ लोग स्कूटर पर सवार थे, जबकि अन्य पैदल मस्जिद की ओर बढ़ रहे थे। पुलिस ने इन लोगों से उनकी काली पट्टियां उतरवा दीं, जिसके बाद स्थानीय लोगों में गुस्सा भड़क गया।
स्थानीय निवासी रेहान खान ने कहा, "हमें शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करने का हक है। काली पट्टी बांधने से किसी का क्या नुकसान हो रहा था? पुलिस को इतनी परेशानी क्यों हो रही है?" वहीं, एक अन्य व्यक्ति मोहम्मद अनस ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, "मुसलमानों को इतना कमजोर कर दिया गया है कि हम अपने हक के लिए आवाज भी नहीं उठा सकते।"
वक्फ बिल को लेकर क्यों है विवाद?
वक्फ (संशोधन) बिल 2024 में प्रस्तावित बदलावों में वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने की बात कही गई है, जिसे AIMPLB और कई मुस्लिम संगठन अपने धार्मिक मामलों में दखल मानते हैं। AIMPLB ने इसे "मुस्लिम संपत्तियों को हड़पने की साजिश" करार दिया है। बोर्ड ने देशभर में इस बिल के खिलाफ प्रदर्शन की योजना बनाई है, जिसमें पटना, विजयवाड़ा और अन्य शहरों में बड़े प्रदर्शन शामिल हैं।
AIMPLB के प्रवक्ता एसक्यूआर इलियास ने कहा, "यह बिल मुस्लिम समुदाय के हितों के खिलाफ है। हम हर संवैधानिक और लोकतांत्रिक तरीके से इसका विरोध करेंगे।" इस मुद्दे पर विपक्षी दलों ने भी AIMPLB का समर्थन किया है। तमिलनाडु विधानसभा ने हाल ही में इस बिल के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसे मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भेदभावपूर्ण बताया।
मेरठ में पहले भी रहे हैं तनाव
मेरठ का इतिहास इस तरह के तनावों से भरा रहा है। साल 2019 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान मेरठ में हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें पांच लोगों की मौत हो गई थी। उस वक्त भी लिसाड़ी गेट इलाके में शुक्रवार की नमाज के बाद हिंसा हुई थी। स्थानीय लोगों का आरोप था कि पुलिस ने इलाके के सीसीटीवी कैमरे तोड़ दिए थे, हालांकि पुलिस ने इन आरोपों से इनकार किया था।
सोशल मीडिया पर भी भड़का गुस्सा
इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर भी लोगों ने अपनी नाराजगी जाहिर की। एक यूजर जावेद खान ने लिखा, "पुलिस के पास कोई काम नहीं है, बस यही काम रह गया है।" वहीं, एक अन्य यूजर मोहम्मद तौहीद ने तंज कसते हुए कहा, "ये नया भारत है, जहां एक पक्ष तोड़फोड़ करता है और पुलिस चुप रहती है, लेकिन काली पट्टी बांधने पर भी डर लगता है।"
हालांकि, कुछ लोगों ने पुलिस के इस कदम का समर्थन भी किया। एक यूजर ने लिखा, "प्रशासन ने सही किया। वक्फ बोर्ड को ऐसा फरमान जारी करने की बजाय लोगों से काले कपड़े पहनकर विरोध करने को कहना चाहिए था। इससे शांति भी बनी रहती।"
आगे क्या?
मेरठ की इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार भी अब छीना जा रहा है? AIMPLB ने साफ कर दिया है कि वे इस बिल के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। बोर्ड ने देशभर में और प्रदर्शन करने की योजना बनाई है, जिसमें विपक्षी दलों के नेताओं को भी शामिल होने का न्योता दिया गया है।
इस बीच, मेरठ में तनाव को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं। लेकिन सवाल यह है कि क्या इस तरह की सख्ती से हालात सुधरेंगे, या फिर समुदायों के बीच अविश्वास और गहरा जाएगा?
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