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25 मार्च 2025, काबुल/नई दिल्ली: आज जब हम वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात करते हैं, तो मुद्रा का मूल्य किसी भी देश की आर्थिक स्थिति का आईना होता है। हाल ही में एक सवाल ने लोगों का ध्यान खींचा है - अफगानिस्तान की मुद्रा, अफगान अफगानी (AFN), भारतीय रुपये (INR) की तुलना में अमेरिकी डॉलर (USD) के मुकाबले क्यों मजबूत दिखाई देती है? यह सवाल इसलिए भी रोचक है क्योंकि अफगानिस्तान पिछले कई दशकों से युद्ध और अस्थिरता से जूझ रहा है, जबकि भारत तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था वाला देश है। तो आइए, इस रहस्य को समझने की कोशिश करते हैं।
अफगान अफगानी और भारतीय रुपये का हाल
अगर हम मौजूदा आंकड़ों पर नजर डालें, तो 1 अमेरिकी डॉलर की कीमत लगभग 83-84 भारतीय रुपये के आसपास है, वहीं 1 डॉलर करीब 70-72 अफगान अफगानी के बराबर है। इसका मतलब यह हुआ कि एक डॉलर के लिए आपको अफगानिस्तान की मुद्रा में भारत की तुलना में कम राशि देनी पड़ती है। यह सुनने में अजीब लग सकता है, क्योंकि अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में कहीं छोटी और कम स्थिर मानी जाती है। लेकिन इसके पीछे कई कारण हैं जो इस अंतर को समझाते हैं।
युद्ध के बावजूद स्थिरता का खेल
अफगानिस्तान ने पिछले दो दशकों में तालिबान शासन, विदेशी हस्तक्षेप और आंतरिक संघर्ष का सामना किया है। इसके बावजूद, अफगान अफगानी ने अपनी मजबूती को बनाए रखा है। जानकारों का मानना है कि इसके पीछे एक बड़ा कारण अफगानिस्तान में अमेरिकी डॉलर का व्यापक इस्तेमाल है। वहां की अर्थव्यवस्था में डॉलर एक समानांतर मुद्रा की तरह काम करता है, जिसके चलते अफगानी पर ज्यादा दबाव नहीं पड़ता। दूसरी ओर, भारत एक खुली अर्थव्यवस्था है, जहां वैश्विक व्यापार, तेल आयात और विदेशी निवेश जैसे कारक रुपये के मूल्य को प्रभावित करते हैं।
पिछले 10 सालों का विश्लेषण
पिछले दस सालों (2015-2024) में अफगान अफगानी और भारतीय रुपये का प्रदर्शन देखें, तो कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आते हैं। इस दौरान भारतीय रुपये ने अफगान अफगानी के मुकाबले लगभग 17.36% की बढ़त हासिल की है। लेकिन अमेरिकी डॉलर के खिलाफ दोनों मुद्राएं कमजोर हुई हैं - INR में करीब 27.7% की गिरावट आई, जबकि AFN में 54.5% की। इसका मतलब यह है कि अफगानी की हालत रुपये से ज्यादा खराब हुई है, लेकिन फिर भी यह डॉलर के मुकाबले रुपये से बेहतर स्थिति में दिखती है। 2015 में 1 INR की कीमत 1.18 AFN थी, जो अब घटकर 0.98 AFN पर आ गई है। यह भारत की आर्थिक स्थिरता और अफगानिस्तान की चुनौतियों के बीच एक रोचक तुलना पेश करता है।
क्या है असली वजह?
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अफगानिस्तान में मुद्रा का मूल्य स्थानीय मांग और आपूर्ति से ज्यादा प्रभावित नहीं होता, क्योंकि वहां का बाजार सीमित है। इसके उलट, भारत में रुपये का मूल्य वैश्विक कारकों जैसे विदेशी मुद्रा भंडार, महंगाई और व्यापार संतुलन से तय होता है। भारत को अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए तेल आयात करना पड़ता है, जिसके लिए डॉलर में भुगतान होता है। इससे रुपये पर दबाव बढ़ता है। वहीं, अफगानिस्तान में ऐसी स्थिति कम देखने को मिलती है।
लोगों की राय
सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोग इसे अफगान सरकार की नीतियों की जीत मानते हैं, तो कुछ इसे भारत की आर्थिक नीतियों की कमजोरी बताते हैं। एक यूजर ने लिखा, "अफगानिस्तान का शासन भले ही अस्थिर हो, लेकिन उनकी मुद्रा का खेल कुछ अलग ही है।" वहीं, दूसरी ओर कुछ का मानना है कि यह तुलना सही नहीं है, क्योंकि दोनों देशों की परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं।
आगे क्या?
फिलहाल, यह कहना मुश्किल है कि यह स्थिति लंबे समय तक रहेगी। अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था अभी भी अनिश्चितता के दौर से गुजर रही है, और भारत लगातार अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रहा है। लेकिन यह सवाल निश्चित रूप से हमें सोचने पर मजबूर करता है कि मुद्रा का मूल्य सिर्फ आर्थिक शक्ति से नहीं, बल्कि कई छिपे हुए पहलुओं से भी तय होता है।
अगर आपको यह खबर पसंद आई, तो अपनी राय हमें जरूर बताएं। क्या आपको लगता है कि अफगान अफगानी की यह मजबूती एक अस्थायी चमत्कार है, या इसके पीछे कोई ठोस वजह है?
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