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Imran Masood vs Majid Ali SaharanpurNews |
नई दिल्ली, 18 मार्च 2025: दिल्ली के जंतर मंतर पर वक्फ संशोधन विधेयक (वक्फ अमेंडमेंट बिल) के खिलाफ हाल ही में हुए विरोध प्रदर्शन में कांग्रेस सांसद इमरान मसूद की सक्रिय भागीदारी ने उनके प्रशंसकों के बीच खासी चर्चा पैदा की है। सहारनपुर से लोकसभा सांसद मसूद ने इस प्रदर्शन में जोशीला भाषण देते हुए कहा, "जहां खून की जरूरत होगी, वहां खून देंगे। जहां आपको लड़ने की जरूरत होगी, वहां हम आपको पहली कतार में खड़े मिलेंगे।" उनके इस बयान ने न केवल प्रदर्शनकारियों में जोश भरा, बल्कि उनके समर्थकों के बीच भी उनकी लोकप्रियता को और मजबूत किया। हालांकि, इस प्रदर्शन के बाद उनके प्रशंसकों ने बसपा नेता माजिद अली से सवाल उठाना शुरू कर दिया है कि वे इस मुद्दे पर जंतर मंतर क्यों नहीं पहुंचे।
इमरान मसूद हाल ही में एक अन्य विवाद के कारण भी चर्चा में थे। इस महीने की शुरुआत में होली के दौरान सहारनपुर में अपने आवास पर हिंदू कार्यकर्ताओं के साथ रंग खेलने को लेकर कुछ उलेमाओं ने आपत्ति जताई थी। देवबंद के मौलाना कारी इसहाक गोरा और मुफ्ती अरशद फारूकी ने इसे शरीयत के खिलाफ बताया था। इस पर मसूद ने जवाब दिया, "होली खेलना या न खेलना मेरे और अल्लाह के बीच का मामला है। मुझे उलेमाओं के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं।" इस बयान के बाद उनके प्रशंसकों ने उन्हें एक निडर और बेबाक नेता के रूप में देखा।
दूसरी ओर, माजिद अली, जो 2024 के लोकसभा चुनाव में सहारनपुर से बसपा उम्मीदवार थे, ने होली विवाद के दौरान अप्रत्यक्ष रूप से मसूद की आलोचना की थी। माजिद ने कहा था कि धार्मिक भावनाओं का सम्मान राजनीति से ऊपर होना चाहिए। लेकिन जंतर मंतर पर वक्फ बिल के खिलाफ हुए इस बड़े प्रदर्शन में उनकी अनुपस्थिति ने इमरान मसूद के प्रशंसकों को मौका दे दिया। सोशल मीडिया पर मसूद के समर्थक माजिद से पूछ रहे हैं, "इमरान मसूद अपने समुदाय के हक के लिए जंतर मंतर पर डटकर लड़े, लेकिन आप कहां थे? क्या आपको इस मुद्दे की गंभीरता का अंदाजा नहीं?"
मसूद ने जंतर मंतर पर वक्फ विधेयक को अल्पसंख्यक अधिकारों पर हमला करार देते हुए सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "यह विधेयक वक्फ संपत्तियों को हड़पने की साजिश है, जिसे हम किसी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे।" उनके इस रुख ने उन्हें अल्पसंख्यक समुदाय के बीच मजबूत समर्थन दिलाया। वहीं, माजिद अली की ओर से अभी तक इस सवाल का कोई जवाब नहीं आया है कि वे प्रदर्शन में क्यों शामिल नहीं हुए।
यह घटना न केवल सहारनपुर की सियासत में दोनों नेताओं के बीच प्रतिस्पर्धा को उजागर करती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि इमरान मसूद अपने समर्थकों के बीच कितने प्रभावशाली हो गए हैं। उनके प्रशंसकों का मानना है कि मसूद हर मौके पर अपने समुदाय के लिए खड़े होते हैं, जबकि माजिद अली जैसे नेताओं की चुप्पी सवाल खड़े करती है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि माजिद इस सवाल का जवाब कैसे देते हैं और क्या वे अपने रुख को स्पष्ट करते हैं।
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