हज़रत नवास बिन समआन से एक लम्बी अहादीस मरवी है वो फरमाते है के रसूलुल्लाह ﷺ ने दज्जाल का तज़किरा फरमाया के दज्जाल फिर एक कोम के पास आएगा और उनको फिर अपनी खुदाई की दावत देगा लिहाज़ा वो उसको क़ुबूल करेंगे और उस पर ईमान ले आएंगे बस वो आसमान को हुक़्म करेगा के इन पर पानी बरसाए फिर आसमान उन पर पानी बरसाएगा और फिर वो ज़मीन को हुक़्म करेगा के ग़ल्ला उगाए तो फिर वो ग़ल्ला उगाएगी और उनके जानवर मोटे ताज़े हो जाएंगे! फिर एक और कोम के पास आएगा और उनको भी अपनी खुदाई की दावत देगा लेकिन वो उससे इनकार कर देंगे बस वो इनकार इस हाल में करेंगे के उनका माल खेती बाड़ी सब ख़त्म हो चुकी होंगी!
आसमान से बारिश बरसाना या तो वो जादू के ज़रिये करेगा या लेज़र शाआऊ के ज़रिए दिखाएगा या मस्नूई बारिश करेगा जैसा कि इस दौर में मस्नूई तरीक़े से बारिश बरसाना तरक़्क़ी याफ्ता मुल्कों में आम हो चला है जिसमें बादलों के ऊपर जाकर एक ख़ास किस्म की केमिकल स्प्रे किया जाता है जिस से मर्ज़ी के इलाके में मर्ज़ी के मुताबिक़ बारिश की जाती है! और दुबई अपने यहां पीने के पानी की कमी को मस्नूई बारिश के ज़रिए पूरा करने का मंसूबा बना चुका है।
ग़र्ज़ दज्जाल मस्नूई तरीक़ा से बारिश कराएगा जिस से फसल लहला उठेगी और जो उसकी बात नही मानेगा उन के इलाक़ो में बारिश नही कराएगा! और खेतों को बंजर करने का मतलब ये है के लेज़र शाआऊ के ज़रिया खेती को जला देगा जैसा कि आज भी लेज़र शाआऊ के ज़रिया पथरी को भी तोड़ दिया जाता है बदन से ग़ैर ज़रूरी बालो को जला दिया जाता है कील मुहासे उसके ज़रिया जला दिए जाते है तो हो सकता है वो लेज़र शाआऊ का इस्तेमाल करके ये तमाम काम अंज़ाम दे! और उसके साथ ना जाने कैसी/कैसी टेक्नोलॉजी होंगी!
मौलाना आसिम उमर इस तरह की अहादीस के ज़मन में अपनी किताब (तीसरी जंगे अज़ीम) और दज्जाल में लिखते है और जो लोग दज्जाल की खुदाई को तस्लीम करने से इनकार कर देंगे दज्जाल उनसे नाराज़ हो कर वापिस चला जायेगा और फिर उनकी खेतियाँ सूख जाएंगी इस बात को काश्तकार हज़रात आज के दौर में बहुत अच्छी तरह समझ सकते है! उस से पहले ये समझे के (PATENT) ये एक क़ानून है जो मालिक की हक़ मिल्कियत को साबित करता है नई आलमी ज़रई पॉलिसी जिसको किसानों की तरक़्क़ी व खुशहाली में इंक़लाब का नाम दिया जा रहा है दरअसल उनके हाथ से अनाज़ का एक/एक दाना छीन लेने की साज़िश है!
ग़ज़ाई मवाद (SEEDS) बीजों को (PATENT) के ज़रिया यहूदी कम्पनियां किसी बीज को (PATENT) करले तो तो फिर गोया वो उनकी मिल्कियत हो गया! मसअलन इंडियन चावल को वो किसी ओर नाम से (PATENT) करले तो हमारा हर किसान उस कम्पनी से बासमती का बीज खरीदने का पाबन्द होगा अगर वो अपना बीज बनाएगा तो उस पर जुर्माना और जेल की हवा खानी पड़ेगी! कियोंकि ये मस्नूई तौर पर (GENETIC) जीनियाती तरीक़े से तैयार किया जाता है इसलिए ये एक साल ही पैदावार दे पाता है फिर अगले साल नया बीज खरीदना पड़ता है! उनके साथ दवाई भी उसी कम्पनी की उसपर काम करेगी और अगर किसी ओर कम्पनी का इस्प्रे किया तो फ़सल तबाह हो जाएगी! नेज़ उससे तैयार शद-फआल ग़ज़ा के बजाय बीमारी होगी!
यही वजह है के क़हत-ज़दा अफ्रीकी मुमालिक ने इन बीजों से तैयार शुदा अमेरिकी ग़ज़ाई इमदाद लेने से इन्कार कर दिया! और ज़िम्बिया के सदर ने यहां तक कहा के अपने लोगो को देने से पहले हमें उनकी जांच ज़रूर करनी है हम ज़हरीली ख़ुराक़ खाने पर भूख से मरने पर तरजीह देंगे?
जारी!
किस्त 2 पढ़े 👇
बदलते हालात-ए हाज़िरा और दज्जाली साजिशें? किस्त नम्बर(1) Aariz Khan ✍️
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