अस्सलामुअलैयकुम दोस्तो,
निकाह के नाम पर शादी तुम करो और दो तीन सौ बरातियों के खाने का ख़र्चा लडकी के माँ-बाप उठाएे यह कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है ? समझ नही आता इस रिवाज को इतनी तवज्जो क्यों दी जा रही है, इस्लाम मे ऐसा करना कही की भी सुन्नत नही है, लेकिन दुनियादारी के चक्कर मे पड़ कर हम उस लड़की की माँ बाप जो बहुत गरीब और लाचार होता है उसके लिया किया हम मुसीबतों का पुल नही बना रहे हैं, हम सबको ये सोचना चाहिए कि सारे इंसान एक जैसे पैसे वाले नही होते है, हमे अपने गरीब और लाचार भाइयो की बहन और बेटियों के बारे में सोचना चाहिए जो शादी में इतना खर्च नही कर पाने के कारण कुवारी लड़की को घर मे मजबूरी में बैठा कर रखते है।
मेहर तुम देते नहीं, उधार रखकर माफ़ करवा कर हक़ मारना यह कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है ? बुरा मत मानना मेरी इन कड़वी बातों का, लेकिन सच यही है और किसी ने सही कहा सच हमेशा कड़वा होता है।
मेहर तुम देते नहीं, उधार रखकर माफ़ करवा कर हक़ मारना यह कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है ? बुरा मत मानना मेरी इन कड़वी बातों का, लेकिन सच यही है और किसी ने सही कहा सच हमेशा कड़वा होता है।
शुरुआती सात महीने तक बीवी से पूरे खानदान की नौकरी करवा कर उसे खिदमत का नाम देकर जब डिलिवरी का वक़्त करीब अाए तो उसे फिर "मायके" छोड़ आना कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है ? ओर अपने ससुर ओर सासु को हमे अपने माँ बाप की तरह ही इज्जत करना चाहिए, क्योंकि उन्होंने हमे अपनी ज़िंदगी की अनमोल हीरा हमे सौप दिया है, जो आगे चलकर आपके रकबे को इस दुनिया मे आगे बढ़ाएगी।
ज़्यादातर डिलिवरी सिजेरियन अापरेशन से हो रही हैं, पैदा होने वाला बच्चा तुम्हारा और उसका ख़र्चा लड़की के माँ-बाप उठाएे यह कौन सी सुन्नत है कौन सा इस्लाम है ? ये बहुत गलत है कि हम बच्चे की डिलीवरी के दौरान लड़की को उसके मायके छोड़ आते है, जरा एक बात सोचो किया लड़की के घर मे ओर बहने या भाई नही है, किया उसके माँ बाप को अपना काम नही है, समझो भाइयो हमे ऐसी चीज़ो से तौबा करनी चाहिए।
अरे लोगों यह डाकुओं और लुटेरों वाली आदतें अपने आप में से निकालो और सुधर जाओ, और क़ौम के हर तबक़े और हर मां बाप को चाहिए कि वह बारातियों को खाना खिलाने का रिवाज बंद करें और लड़के वालों को भी चाहिए कि वो लड़की के वालिदैन से बकवास फ़रमाइशें बंद करें, क्योंकि फरमाइश एक ऐसी चीज़ है जो लोगो की बढ़ती जाती है और फिर कभी कम होने का नाम नही लेती।
मेहर लड़की का हक़ है जिसे लड़की खुद तय करे या फिर वो बाप भाई में से जिसे जिम्मेदारी दे वो तय करे, जहां तक हो सके मेहर को गोल्ड सोने पर तय करें, ओर मेहर की रकम को अपनी बीवी को किये वादे के मुताबिक उसको दे, ये नही की कोई और बहाना चलता रहे और आपकी ज़िंदगी के आखिरी दिनों में मेहर दे, दे तो सकते है कभी भी लेकिन हमारा हक़ है कि हम मेहर को वादे के मुताबिक ही दे।
लड़के वालों को भी चाहिए कि वो भी कोशिश करें कि मेहर हाथों हाथ लड़की को दे दें, मेहर पर सिर्फ ओर सिर्फ लड़की का हक़ होता है वो जो चाहे वो करे जिसे चाहे उसे दे !!मेहर अदा करने के बाद मेहर की रकम पर लड़के का या लड़के के घर वालों का कोई हक नहीं !!
आइये हम अहद करें कि हम अपने बेगैरती के लिबास पर ग़ैरत की चादर डाल कर शादियों के नाम पर होने वाले तमाम फ़ुज़ूल के कामों को रोक कर निकाह को आसान और ज़िंदगी को ख़ुश गवार बनाएंगे और यह भी तय करें कि हमारी वजह से कोई लड़की किसी बाप पर बोझ न बने, ओर न ही लड़की के बाप को बियाज़ पर पैसा लेने की अपनो लड़की को शादी के लिए जरूरत ना पड़े।
में मानता हूं कि मैं भी कोई दूध का धुला नही हु भाइयो, लेकिन सुरुआत तो हम सबको ही करनी होगी। इंशाअल्लाह अगर हम सब मिलकर इस चीज़ पर गौर फरमाएंगे ओर इस पर अमल करेंगे तो सभी के लिये चाहे वो लड़की वाला हो या लड़का वाला सभी को इससे आराम मिलेगा और दुनियादारी से हटकर सुकून भी मिलेगा। ओर में मानता हूं, हजार मुँह के हज़ार ही विचार होते है, ओर ये जरूरी नही सभी के विचार एक जैसे हो या आपस मे मेल खाते हो, लेकिन हम सबको इसकी सुरुआत बहुत जल्द से जल्द करनी चाहिए। मेरी इस ग्रुप के सभी मेंबर से गुजारिश है कभी आपस मे किसी भी बात का इस तरह से कटाक्ष न करें जिससे सामने वाले आपकी बातों से आहत हो।
सुऐब खान भावनपुरिया की कलम से ✍️. आप सुऐब खान भावनपुरिया को फेसबुक के जरिये add या अपना फ़्रेंडलिस्ट में ऐड कर सकते है, उनकी फेसबुक प्रोफाइल से जुड़ने के लिए आगे दिए हुए पीले कलर पर क्लिक करें 👉 https://www.facebook.com/suaib.khan
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