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तूफ़ान मे Noida मे लम्बी ईमारतो का झड़ने से चर्चा मे क्यों आया क़ुतुब मीनार

Qutub-Minar-1119-2025
दिल्लीवासियों! क्या आपने कभी कुतुब मीनार के पास खड़े उस रहस्यमयी लोहे के खंभे को देखा है, जो 1600 साल पुराना होने के बावजूद आज भी जंग से मुक्त है? जी हाँ, हम बात कर रहे हैं दिल्ली के मशहूर कुतुब मीनार परिसर में मौजूद उस लोहे के खंभे की, जो न सिर्फ इतिहास का गवाह है, बल्कि विज्ञान की दुनिया में भी एक पहेली रहा है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस रहस्य से पर्दा उठा दिया है। आइए, गाड़ा टाइम्स के इस खास लेख में जानते हैं कि आखिर क्यों यह खंभा इतने सालों बाद भी चमकता है!

लोहे का खंभा: एक अनोखा चमत्कार, प्राचीन कारीगरी का कमाल

लोहे का खंभा: एक अनोखा चमत्कार

कुतुब मीनार के प्रांगण में खड़ा यह 7.2 मीटर ऊँचा और 6 टन वजनी लोहे का खंभा गुप्तकाल (चौथी-पाँचवीं सदी) का है। इसे चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय बनाया गया था और बाद में दिल्ली लाया गया। बारिश, धूप, और प्रदूषण का सामना करने के बावजूद इस खंभे पर जंग का एक दाग तक नहीं! ऐसा क्या है इस खंभे में, जो इसे इतना खास बनाता है?
2003 में आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिकों ने इस खंभे का गहन अध्ययन किया और पाया कि इसका रहस्य इसकी खास बनावट में छिपा है। यह खंभा शुद्ध लोहे (wrought iron) से बना है, जिसमें फॉस्फोरस की मात्रा (लगभग 1%) आधुनिक लोहे की तुलना में बहुत ज्यादा है। इस फॉस्फोरस की वजह से खंभे की सतह पर एक पतली परत बनती है, जिसे मिसावाइट कहते हैं। यह परत इतनी मजबूत है कि जंग को खंभे तक पहुँचने ही नहीं देती।
हमारे पुरखों की कारीगरी भी कमाल की थी! इस खंभे को बनाने में फोर्ज-वेल्डिंग तकनीक का इस्तेमाल हुआ, जिसमें लोहे को गर्म करके हथौड़े से पीटा जाता था। इस प्रक्रिया ने फॉस्फोरस को बरकरार रखा, जो आज के लोहे में मुश्किल से मिलता है। यानी, यह खंभा न सिर्फ मजबूत है, बल्कि प्राचीन भारत की उन्नत धातु विज्ञान का जीता-जागता सबूत भी है।

मौसम का भी साथ, एक सांस्कृतिक धरोहर, क्यों है यह खास?

मौसम का भी साथ, क़ुतुब मीनार 

दिल्ली का मौसम, खासकर बारिश और सूखे का चक्र, इस खंभे की सुरक्षा में मदद करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि गीले और सूखे मौसम के बदलाव ने मिसावाइट की परत को और मजबूत किया। यह परत 1600 सालों में सिर्फ एक-बीसवाँ मिलीमीटर मोटी हुई, लेकिन इतनी ताकतवर है कि जंग को रोक देती है।

यह लोह खंभा सिर्फ वैज्ञानिक चमत्कार ही नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर भी है। इस पर चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय की शिलालेख हैं, और लोककथाओं में कहा जाता है कि अगर आप इस खंभे को पीठ करके गले लगाएँ, तो आपकी मनोकामना पूरी हो सकती है! हालाँकि, अब इसे संरक्षित करने के लिए चारों तरफ बाड़ लगाई गई है, ताकि इसे नुकसान न पहुँचे।
यह लोह खंभा न सिर्फ भारत की प्राचीन तकनीक का प्रतीक है, बल्कि यह हमें सिखाता है कि कैसे पुरानी और नई तकनीकों का मेल भविष्य को बेहतर बना सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि इस खंभे की तकनीक का अध्ययन करके हम आज के निर्माण में भी जंग-रोधी सामग्री बना सकते हैं।

देश मे क़ुतुब मीनार को लेकर क्यों हुई चर्चा तेज

देश मे क़ुतुब मीनार को लेकर चर्चा 

हाल ही में भारत में आए तूफान ने कई क्षेत्रों में भारी तबाही मचाई, जिसमें इमारतों का ढहना और सड़कों पर होर्डिंग्स का गिरना शामिल है। दिल्ली के मुस्तफ़ाबाद और बुराड़ी जैसे इलाकों में इमारतों के ढहने की घटनाएं सामने आईं, जहां कई लोग मलबे में फंस गए और बचाव कार्यों में देरी ने जनता के बीच आक्रोश को जन्म दिया। इसके अलावा, ग्रेटर नोएडा वेस्ट में तेज आंधी के कारण फ्लैटों की खिड़कियां और दरवाजे उड़ गए, जिसने निर्माण गुणवत्ता पर सवाल उठाए। इन घटनाओं ने जनता का ध्यान ऐतिहासिक क़ुतुब मीनार की मजबूती की ओर खींचा, जो सैकड़ों वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं का सामना करते हुए अडिग खड़ा है। लोगों ने इसकी तुलना आधुनिक इमारतों से करते हुए सरकार और बिल्डरों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, यह सवाल उठाया कि यदि पुराने समय में बिना आधुनिक तकनीक के इतने मजबूत ढांचे बन सकते हैं, तो आज की इमारतें मामूली तूफान में क्यों ढह रही हैं।
जनता का गुस्सा केवल इमारतों की गुणवत्ता तक सीमित नहीं है, बल्कि यह सरकार की जवाबदेही और भ्रष्टाचार पर भी केंद्रित है। वाराणसी में एक महीने पहले बनी सड़क के टूटने की खबर ने निर्माण कार्यों में भारी कमीशन और घटिया सामग्री के उपयोग को उजागर किया। लोग यह तर्क दे रहे हैं कि क़ुतुब मीनार जैसे ऐतिहासिक ढांचे, जो बिना आधुनिक उपकरणों के बनाए गए, आज भी मजबूती का प्रतीक हैं, जबकि आज के निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार और लापरवाही के कारण जनता की जान जोखिम में है। सोशल मीडिया और सार्वजनिक मंचों पर लोग सरकार से सख्त कार्रवाई और पारदर्शी जांच की मांग कर रहे हैं, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके और निर्माण गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जाए।

तो अगली बार जब आप कुतुब मीनार जाएँ, इस चमकते खंभे को जरूर देखें और गर्व करें कि हमारे पूर्वज कितने हुनरमंद थे! अगर आपको यह कहानी पसंद आई, तो गाड़ा टाइम्स पर अपने विचार जरूर साझा करें।
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