अब अमेरिका क़े बाद ब्रिटेन ने भारत-पाकिस्तान ceasefire को लेकर दिया बड़ा बयान, ब्रिटेन क़े मंत्री ने की पाकिस्तान की यात्रा
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भारत-पाकिस्तान, सीजफायर, कश्मीर कॉन्फ्लिक्ट |
दिल्ली की गलियों में आजकल एक ही चर्चा है - भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर को लेकर ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड लैमी का बयान। जी हां, दिल्ली में बैठे सियासी पंडितों से लेकर आम आदमी तक, हर कोई हैरान है कि ये अंग्रेज, जिन्होंने 1947 में बंटवारे का जख्म दिया, अब भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम कराने का दावा कर रहे हैं। ये खबर इतनी तेजी से फैली कि दिल्ली की सर्द हवाओं में भी गर्मी सी महसूस होने लगी।
17 मई 2025 को डेविड लैमी अचानक इस्लामाबाद पहुंचे और वहां उन्होंने कहा कि ब्रिटेन, अमेरिका के साथ मिलकर भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर कराने में कामयाब रहा है। लैमी ने ये भी कहा कि कश्मीर में हाल ही में हुई हिंसा और आतंकी हमले के बाद दोनों देशों के बीच तनाव कम करना जरूरी था। उन्होंने इसे "क्षेत्रीय शांति के लिए सकारात्मक कदम" बताया। लेकिन दिल्ली में लोग पूछ रहे हैं - क्या ये वाकई शांति की राह है, या फिर कोई नया सियासी ड्रामा?
दिल्ली के सियासी गलियारों में ये सवाल जोरों पर है कि क्या भारत ने ब्रिटेन और अमेरिका की मध्यस्थता को स्वीकार कर लिया है? क्योंकि भारत हमेशा से कहता आया है कि कश्मीर मसला उसका और पाकिस्तान का आपसी मामला है। फिर अचानक ब्रिटेन का ये दावा कैसे? दिल्ली के एक वरिष्ठ पत्रकार ने हमें बताया, "मोदी सरकार ने पिछले 11 सालों में 86 विदेश यात्राएं कीं, लेकिन कश्मीर मुद्दे पर कभी तीसरे देश की मध्यस्थता नहीं मानी। अब अगर ब्रिटेन और अमेरिका की बात सही है, तो ये भारत की कूटनीति पर बड़ा सवाल है।"
दिल्ली की जनता भी इस खबर से हैरान है। करोल बाग में चाय की टपरी पर बैठे रमेश भाई ने कहा, "अरे भाई, अंग्रेजों ने तो हमें बांट दिया था, अब ये शांति की बात कर रहे हैं? कुछ तो गड़बड़ है।" वहीं, दिल्ली यूनिवर्सिटी की एक छात्रा नेहा ने कहा, "कश्मीर में शांति होनी चाहिए, लेकिन ब्रिटेन और अमेरिका को बीच में लाने की क्या जरूरत थी? हमारे देश के नेता क्या कर रहे हैं?"
इस बीच, सोशल मीडिया पर भी हंगामा मचा हुआ है। कई लोगों ने लिखा कि अगर सीजफायर हुआ भी है, तो इसका क्रेडिट ब्रिटेन और अमेरिका को क्यों? दिल्ली के कुछ ट्विटर यूजर्स ने तो मजाक में ये भी कहा कि अब तो नेपाल और भूटान भी आकर दावा करेंगे कि उन्होंने सीजफायर कराया।
कश्मीर कॉन्फ्लिक्ट की बात करें तो ये कोई नई बात नहीं है। 1947 में बंटवारे के बाद से ही भारत और पाकिस्तान इस मसले पर उलझे हुए हैं। हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने तनाव और बढ़ा दिया था। लेकिन अब सवाल ये है कि क्या ये सीजफायर वाकई लंबे समय तक टिकेगा, या फिर ये सिर्फ एक सियासी चाल है?
दिल्ली में सियासतदानों को अब इस पर जवाब देना होगा। क्योंकि अगर ब्रिटेन और अमेरिका वाकई इस सीजफायर के पीछे हैं, तो भारत की कूटनीति पर सवाल उठना लाजमी है। दिल्ली की जनता इंतजार कर रही है कि इस नए ट्विस्ट का जवाब सरकार कैसे देती है।
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