सऊदी अरब के इस फैसले से सऊदी युवाओं के बीच छिड़ी बहस, सऊदी सरकार से कर रहे सवाल किया शरीयत के हिसाब से कानून बना है
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सऊदी अरब से एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है, जिसने सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ दी है। सऊदी अरब ने अपने पुरुष नागरिकों के लिए पाकिस्तान, बांग्लादेश, चाड और म्यांमार की महिलाओं से शादी करने पर पाबंदी लगा दी है। जिसके बाद से लोग इस फैसले पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। आइए, इस खबर को विस्तार से समझते हैं और जानते हैं कि आखिर इस पाबंदी के पीछे क्या कारण हो सकते हैं।
क्या है सऊदी अरब का नया नियम?
सऊदी अरब ने पहले से ही विदेशी लोगों से शादी करने के लिए सख्त नियम लागू किए हुए हैं। साल 2014 में बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, सऊदी पुरुषों को विदेशी महिलाओं से शादी करने के लिए स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेनी पड़ती है। इसके तहत उन्हें एक शादी का प्रस्ताव और अपनी पहचान का प्रमाण देना होता है, जिसे बाद में सरकारी समिति द्वारा जांचा जाता है। लेकिन अब खबर है कि चार देशों—पाकिस्तान, बांग्लादेश, चाड और म्यांमार—की महिलाओं से शादी पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है।
सऊदी अरब में पहले से ही करीब 90 लाख विदेशी कामगार रहते हैं, जो देश की आबादी का लगभग 30% हिस्सा हैं। इनमें से करीब 5 लाख महिलाएं इन चार देशों से हैं। सऊदी सरकार ने इस पाबंदी पर आधिकारिक तौर पर कोई बयान नहीं दिया है, लेकिन माना जा रहा है कि यह कदम सामाजिक और आर्थिक कारणों से उठाया गया है। कुछ लोगों का कहना है कि सरकार अपनी जनसांख्यिकीय संरचना को बनाए रखना चाहती है, वहीं कुछ इसे सांस्कृतिक संरक्षण का हिस्सा मान रहे हैं।
सोशल मीडिया पर क्या है लोगों की राय?
इस खबर के सामने आने के बाद X पर लोगों ने अपनी-अपनी राय रखी। कुछ यूजर्स ने इस फैसले को सख्ती से निजी मामलों में दखलंदाजी बताया।
@FarazAhmed003
ने लिखा, "शादी एक निजी और व्यक्तिगत मामला है, सरकार इसमें कैसे हस्तक्षेप कर सकती है?" वहीं, @brucefenton
ने सवाल उठाया, "कुरान में कहां लिखा है कि किसी काल्पनिक रेखा (सीमा) के आधार पर शादी पर रोक लगाई जा सकती है?"कई यूजर्स ने इस फैसले को नस्लवादी करार दिया।
@Ali0103Ali
ने लिखा, "अगर कोई पाकिस्तानी महिला यूके से है, तब भी क्या? यह तो साफ तौर पर नस्लवाद है।" दूसरी ओर, कुछ लोगों ने इस फैसले का समर्थन भी किया। @ISenpai44967
ने इसे "अच्छा कदम" बताया, जबकि @msba55945204
ने कहा कि यह कोई नई बात नहीं है, बल्कि पहले से चली आ रही नीति को और सख्त किया गया है।सऊदी अरब में शादी-विवाह के नियम इस्लामिक शरिया कानून पर आधारित हैं। शरिया के तहत, एक मुस्लिम पुरुष को "अहल-ए-किताब" (यहूदी और ईसाई) महिलाओं से शादी करने की इजाजत है, लेकिन मुस्लिम महिलाओं को गैर-मुस्लिम पुरुषों से शादी की अनुमति नहीं है। हालांकि, राष्ट्रीयता के आधार पर शादी पर रोक का कोई स्पष्ट प्रावधान शरिया में नहीं है। यही वजह है कि
@qaymaralives
जैसे यूजर्स ने सवाल किया, "यह शरिया का कौन सा हिस्सा है?"कुछ लोगों ने सऊदी सरकार की दोहरी नीतियों पर भी सवाल उठाए।
@raregur
ने टिप्पणी की, "आधे नंगे गायकों को बुलाकर उनके प्रदर्शन को बढ़ावा देना सऊदी प्रशासन को शर्मिंदा नहीं करता, लेकिन एक मुस्लिम की मुस्लिम महिला से शादी की इच्छा को जटिल नौकरशाही प्रक्रिया में बदल दिया जाता है।"पहले भी लागू हो चुके हैं ऐसे नियम
यह पहली बार नहीं है जब सऊदी अरब ने इस तरह का कदम उठाया है। 2014 में भी इसी तरह की पाबंदी की खबर आई थी, जिस पर पाकिस्तान के अखबार 'डॉन' में लोगों ने मिली-जुली प्रतिक्रियाएं दी थीं। कुछ ने इसे नस्लवाद बताया था, तो कुछ ने कहा था कि "अब हमारी महिलाएं सुरक्षित हैं।" सऊदी गजट ने तब सवाल उठाया था कि आखिर इन चार देशों को ही क्यों चुना गया?
सऊदी अरब एक रूढ़िवादी देश है, जहां इस्लामिक परंपराएं और सांस्कृतिक मान्यताएं कानून का आधार हैं। यहां शादियां अक्सर परिवारों या मध्यस्थों के जरिए तय होती हैं। सऊदी सरकार अपनी सामाजिक संरचना को मजबूत करने के लिए अपने नागरिकों को स्थानीय लोगों से शादी करने के लिए प्रोत्साहित करती है। संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जैसे पड़ोसी देशों में भी इसी तरह की नीतियां देखी जाती हैं, जहां स्थानीय पुरुषों को स्थानीय महिलाओं से शादी करने के लिए प्रोत्साहन दिया जाता है।
यह पाबंदी उन लोगों के लिए एक बड़ा झटका है जो सऊदी अरब में रहते हुए इन चार देशों की महिलाओं से शादी करना चाहते थे। हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि यह नियम पूरी तरह से लागू नहीं होगा और इसे सिर्फ नियंत्रित करने के लिए बनाया गया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह कदम सऊदी अरब और इन चार देशों के बीच रिश्तों को प्रभावित करेगा? और क्या यह वाकई में सऊदी सरकार के सामाजिक लक्ष्यों को हासिल करने में मदद करेगा?
आप इस खबर के बारे में क्या सोचते हैं? क्या यह सही कदम है या नस्लवाद को बढ़ावा देने वाला फैसला? अपनी राय हमें कमेंट में जरूर बताएं।
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