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मेरठ,इफ्तार पार्टी,शैलेंद्र प्रताप सिंह |
मेरठ, उत्तर प्रदेश: एक तरफ देश में भाईचारे और एकता की बातें होती हैं, वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे फैसले सामने आते हैं जो इन दावों पर सवाल खड़े कर देते हैं। मेरठ में एक पुलिस चौकी प्रभारी को सिर्फ इसलिए उनके चार्ज से हटा दिया गया क्योंकि उन्होंने एक इफ्तार पार्टी का आयोजन किया था। इस घटना ने सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों तक में एक नई बहस छेड़ दी है।
बात 26 मार्च 2025 की है। मेरठ में एक नई पुलिस चौकी का उद्घाटन हुआ। दिन में इस चौकी के उद्घाटन के मौके पर पूजा-अर्चना की गई, लड्डू बांटे गए और एक दावत का आयोजन भी हुआ। इस दौरान सब कुछ सामान्य रहा और किसी को कोई आपत्ति नहीं हुई। लेकिन शाम को उसी चौकी के प्रभारी शैलेंद्र प्रताप सिंह ने एक इफ्तार पार्टी का आयोजन कर दिया, जिसमें कई लोग शामिल हुए। टेबल पर तरह-तरह के पकवान सजे थे, लोग हंसी-खुशी से रोजा खोल रहे थे और एक-दूसरे से गपशप कर रहे थे। माहौल में भाईचारा और खुशहाली साफ झलक रही थी। लेकिन यही इफ्तार पार्टी दरोगा शैलेंद्र प्रताप सिंह के लिए मुसीबत बन गई।
सोशल मीडिया पर इस इफ्तार पार्टी की तस्वीरें वायरल होने के बाद शैलेंद्र प्रताप सिंह को उनके चार्ज से हटा दिया गया। इस घटना ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। लोग पूछ रहे हैं कि जब दिन में पूजा-अर्चना और दावत का आयोजन हुआ तो उससे किसी को दिक्कत नहीं हुई, लेकिन इफ्तार पार्टी से क्यों परेशानी हो गई? क्या यह धार्मिक भेदभाव का एक उदाहरण नहीं है?
सोशल मीडिया पर भी इस घटना को लेकर लोगों की तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं। एक यूजर ने लिखा, "पूजा-पाठ की दावत हुई तो कुछ नहीं, लेकिन रोजा इफ्तार हो गया तो किनारे कर दिया गया, वाह भाई वाह!" एक अन्य यूजर ने सवाल उठाया कि क्या यह बीजेपी सरकार का मुस्लिम विरोधी रवैया नहीं दर्शाता? कुछ लोगों ने इसे सत्ता में बैठे लोगों की संकीर्ण मानसिकता करार दिया, तो कुछ ने इसे देश में बढ़ते धार्मिक तनाव का एक और सबूत बताया।
यह पहली बार नहीं है जब उत्तर प्रदेश में इफ्तार पार्टी को लेकर विवाद हुआ हो। हाल ही में बुलंदशहर में एक स्कूल की हेडमिस्ट्रेस को सिर्फ इसलिए निलंबित कर दिया गया था क्योंकि उन्होंने स्कूल के बाद एक इफ्तार पार्टी की अनुमति दी थी। इन घटनाओं से साफ है कि राज्य में धार्मिक आयोजनों को लेकर दोहरे मापदंड अपनाए जा रहे हैं।
लखनऊ के एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक एस.पी. शुक्ला ने इस मामले पर अपनी राय देते हुए कहा, "अब जब राज्य की राजनीति पूरी तरह से हिंदुत्व के ढांचे में ढल चुकी है, तो गैर-बीजेपी पार्टियां भी इफ्तार पार्टियों के आयोजन से बच रही हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि उन्हें मुस्लिम समर्थक करार दे दिया जाएगा।" यह बयान मौजूदा राजनीतिक माहौल को साफ तौर पर दर्शाता है।
यह घटना न सिर्फ धार्मिक भेदभाव की ओर इशारा करती है, बल्कि यह भी सवाल उठाती है कि क्या हमारा समाज वाकई में एकता और समानता की दिशा में बढ़ रहा है? शैलेंद्र प्रताप सिंह जैसे लोग, जो भाईचारे को बढ़ावा देना चाहते हैं, उनके साथ ऐसा व्यवहार न सिर्फ उनके हौसले को तोड़ता है, बल्कि समाज में एक गलत संदेश भी देता है।
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