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इस्लामिक तालीम,भाईचारा,ईद-उल-फित्र,मुफ़्ती नदीम |
गाड़ा टाइम्स, 31 मार्च 2025: आज सुबह ईदगाह में ईद-उल-फित्र की नमाज़ के मौके पर मशहूर आलिम-ए-दीन मुफ़्ती नदीम ने नमाज़ पढ़ाई और इस खास मौके पर नमाजियों को इस्लाम की खूबसूरत तालीमात से रूबरू कराया। ईद का यह त्योहार रमज़ान-उल-मुबारक के महीने भर के रोज़ों के बाद खुशी और शांति का प्रतीक है। मुफ़्ती नदीम ने इस मौके पर न सिर्फ नमाज़ की अहमियत को बयान किया, बल्कि समाज को बेहतर बनाने के लिए कुछ अहम मुद्दों पर भी रोशनी डाली।
ईद की नमाज़ के बाद अपने खुत्बे में मुफ़्ती नदीम ने नमाजियों से कहा कि हमें अपनी ज़िंदगी में सामाजिक मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा, "ईद का दिन सिर्फ खुशी मनाने का नहीं, बल्कि समाज में फैली बुराइयों को दूर करने का भी है। हमें अपने आसपास के हालात को देखना चाहिए और इस्लाम के उसूलों के मुताबिक उनसे निपटना चाहिए।" उनका यह बयान इस्लाम की उस बुनियादी तालीम की याद दिलाता है, जिसमें इंसान को अपने समाज के प्रति जिम्मेदार बनने की हिदायत दी गई है।
मुफ़्ती नदीम ने खास तौर पर युवाओं को निशाना बनाते हुए गैर-इस्लामिक कामों से दूर रहने की सलाह दी। उन्होंने जुआ, सट्टा और नशे जैसी बुराइयों को इस्लाम में हराम बताते हुए कहा, "हमारे नौजवान हमारा भविष्य हैं। अगर वे इन गुनाहों में फंस गए तो न सिर्फ उनका बल्कि पूरे समाज का नुकसान होगा। रमज़ान में जिस तरह हमने अपने नफ्स पर काबू पाया, वैसे ही हमें इन बुराइयों से हमेशा बचना चाहिए।" कुरआन में भी अल्लाह तआला ने फरमाया है कि नमाज़ इंसान को बुराइयों से रोकती है, और मुफ़्ती साहब का यह पैगाम उसी तालीम का हिस्सा है।
ईदगाह में मौजूद नमाजियों से मुफ़्ती नदीम ने भाईचारे को कायम रखने की खास अपील की। उन्होंने कहा, "रमज़ान में हमने एक-दूसरे का साथ दिया, गरीबों की मदद की और भाईचारा बनाए रखा। ईद के बाद भी हमें इसे जारी रखना चाहिए। इस्लाम हमें सिखाता है कि हम सब एक-दूसरे के भाई हैं।" उनका यह पैगाम हज़रत मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की उस हदीस की याद दिलाता है जिसमें उन्होंने फरमाया था कि एक मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है, उसे नुकसान नहीं पहुंचाता।
अंत में, मुफ़्ती नदीम ने बस्ती के लोगों से रमज़ान की तरह गुनाहों से बचने और नमाज़ को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाने की गुज़ारिश की। उन्होंने कहा, "रमज़ान हमें यह सिखाता है कि हम अल्लाह की इबादत में डटे रहें और गुनाहों से दूर रहें। यह सिर्फ एक महीने की बात नहीं, बल्कि पूरी ज़िंदगी का उसूल होना चाहिए। नमाज़ हमारा ढाल है, इसे कभी न छोड़ें।" यह बात कुरआन की उस आयत से भी मेल खाती है जिसमें कहा गया है कि नमाज़ बेहयाई और बुराई से रोकती है।
ईद की इस नमाज़ में सैकड़ों लोग शामिल हुए और मुफ़्ती नदीम के इस पैगाम को सुनकर अपने दिलों में नेकी और भाईचारे का जज़्बा लेकर लौटे। यह मौका न सिर्फ खुशी का था, बल्कि इस्लाम के असली मकसद को समझने और उसे अपनी ज़िंदगी में उतारने का भी था।
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