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ब्राह्मण हिन्दू महिला के परिवार की मदद के लिए आगे आए असदुद्दीन ओवैसी, अस्पताल मे 12 लाख का बिल कराया माफ

असदुद्दीन ओवैसी,स्वास्थ्य बीमा नई दिल्ली: दिल्ली में एक दिल छू लेने वाली घटना सामने आई है, जहां ऑल इंडिया मजनलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के नेता और सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने एक ब्राह्मण महिला के परिवार की मदद की है। इस परिवार पर अस्पताल का 15 लाख रुपये का बिल लटक गया था, जिसे वह चुका नहीं पा रहे थे। ओवैसी की पहल से 12 लाख रुपये का बिल माफ कर दिया गया, जिससे परिवार को बड़ी राहत मिली। इस घटना की जानकारी देते हुए एआईएमआईएम के नगर निगम पार्षद जफर खान ने बताया कि महिला की मौत के बाद उनके परिवार को अस्पताल से शव लेने के लिए भारी बिल का सामना करना पड़ा। जब परिवार ने ओवैसी से मदद मांगी, तो उन्होंने तुरंत कार्रवाई की और अस्पताल प्रबंधन से बात करके बिल माफ करवाया। यह घटना उस वक्त सामने आई है, जब देश में स्वास्थ्य सेवाओं की लागत तेजी से बढ़ रही है। 2025 में भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की लागत में 13% की वृद्धि होने का अनुमान है, जो वैश्विक औसत से भी ज्यादा है। ऐसे में गरीब और मध्यम वर्ग के परिवारों के लिए इलाज कराना और अस्पताल के बिल चुकाना मुश्किल हो गया है। ओवैसी की इस पहल को राजनीति से...

42 साल तक बहरीन में फंसे भारतीय व्यक्ति की घर वापसी: 'आपको कभी भुलाया नहीं गया'

प्रवासी भारतीय, गोपालन चंद्रन, बहरीन 42 साल का लंबा इंतज़ार, अनगिनत मुश्किलें, और एक माँ का अपने बेटे के लिए अटूट विश्वास—यह कहानी है गोपालन चंद्रन की, जिन्होंने आखिरकार अपनी मातृभूमि भारत की मिट्टी को फिर से छू लिया। 74 वर्षीय गोपालन, जो केरल के रहने वाले हैं, चार दशकों से अधिक समय तक बहरीन में बिना किसी पहचान के फंसे रहे। उनकी कहानी न केवल धैर्य और उम्मीद की मिसाल है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि इंसानियत और सामूहिक प्रयास किसी की जिंदगी को कैसे बदल सकते हैं। गोपालन चंद्रन 1983 में बेहतर रोज़गार की तलाश में बहरीन गए थे। उस समय वह युवा थे, सपनों से भरे हुए, और अपने परिवार के लिए एक अच्छा भविष्य बनाने की चाहत रखते थे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। बहरीन में उनके नियोक्ता की मृत्यु हो गई, और उनके पासपोर्ट सहित सभी महत्वपूर्ण दस्तावेज़ गुम हो गए। इसके बाद गोपालन की जिंदगी एक अनिश्चितता के भंवर में फंस गई। बिना दस्तावेज़ों के वह न तो भारत लौट सकते थे, न ही वहां कानूनी रूप से रह सकते थे। वह एक ऐसी ज़िंदगी जीने को मजबूर हो गए, जहां उनकी कोई पहचान नहीं थी। इन 42 सालों में गोपालन ने अनगिनत...