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अमेरिका ने तुरंत अपने नागरिकों से बहरीन-कुवैत से निकलने को कहाँ, कभी भी हो सकता इजराइल ईरान युद्ध

अमेरिका,ईरान,युद्ध,बहरीन गल्फ हिंदी न्यूज़, 12 जून 2025 : इन दिनों अंतरराष्ट्रीय खबरों में हलचल मची हुई है। अमेरिका और ईरान के बीच तनाव अपने चरम पर पहुंच गया है। खबर है कि अमेरिका ने अपनी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बहरीन और कुवैत से अपने गैर-जरूरी कर्मचारियों और उनके परिवारों को वापस बुला लिया है। ये कदम तब उठाया गया है, जब ईरान ने अमेरिकी बेस को निशाना बनाने की धमकी दी है। क्या ये युद्ध की शुरुआत का इशारा है? आइए, पूरी खबर जानते हैं। बहरीन और कुवैत क्यों हैं अहम? युद्ध होगा या शांति? क्या कहते हैं लोग? बहरीन और कुवैत क्यों हैं अहम पिछले कुछ महीनों से अमेरिका और ईरान के बीच न्यूक्लियर डील को लेकर बातचीत चल रही थी। अप्रैल 2025 से शुरू हुई ये बातचीत अब रुक गई है, क्योंकि ईरान अपने यूरेनियम संवर्धन को रोकने को तैयार नहीं है। हाल ही में ईरान के रक्षा मंत्री ने चेतावनी दी कि अगर हालात बिगड़े, तो वे अमेरिकी बेस पर हमला कर सकते हैं। इस खबर ने पूरी दुनिया को हिलाकर रख दिया है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक, अमेरिका ने सावधानी बरतते हुए अपने कर्मचारियों को सुरक्षित स्थानों पर भेजने का फैसला...

42 साल तक बहरीन में फंसे भारतीय व्यक्ति की घर वापसी: 'आपको कभी भुलाया नहीं गया'

प्रवासी भारतीय, गोपालन चंद्रन, बहरीन 42 साल का लंबा इंतज़ार, अनगिनत मुश्किलें, और एक माँ का अपने बेटे के लिए अटूट विश्वास—यह कहानी है गोपालन चंद्रन की, जिन्होंने आखिरकार अपनी मातृभूमि भारत की मिट्टी को फिर से छू लिया। 74 वर्षीय गोपालन, जो केरल के रहने वाले हैं, चार दशकों से अधिक समय तक बहरीन में बिना किसी पहचान के फंसे रहे। उनकी कहानी न केवल धैर्य और उम्मीद की मिसाल है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि इंसानियत और सामूहिक प्रयास किसी की जिंदगी को कैसे बदल सकते हैं। गोपालन चंद्रन 1983 में बेहतर रोज़गार की तलाश में बहरीन गए थे। उस समय वह युवा थे, सपनों से भरे हुए, और अपने परिवार के लिए एक अच्छा भविष्य बनाने की चाहत रखते थे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। बहरीन में उनके नियोक्ता की मृत्यु हो गई, और उनके पासपोर्ट सहित सभी महत्वपूर्ण दस्तावेज़ गुम हो गए। इसके बाद गोपालन की जिंदगी एक अनिश्चितता के भंवर में फंस गई। बिना दस्तावेज़ों के वह न तो भारत लौट सकते थे, न ही वहां कानूनी रूप से रह सकते थे। वह एक ऐसी ज़िंदगी जीने को मजबूर हो गए, जहां उनकी कोई पहचान नहीं थी। इन 42 सालों में गोपालन ने अनगिनत...