प्रवासी भारतीय, गोपालन चंद्रन, बहरीन 42 साल का लंबा इंतज़ार, अनगिनत मुश्किलें, और एक माँ का अपने बेटे के लिए अटूट विश्वास—यह कहानी है गोपालन चंद्रन की, जिन्होंने आखिरकार अपनी मातृभूमि भारत की मिट्टी को फिर से छू लिया। 74 वर्षीय गोपालन, जो केरल के रहने वाले हैं, चार दशकों से अधिक समय तक बहरीन में बिना किसी पहचान के फंसे रहे। उनकी कहानी न केवल धैर्य और उम्मीद की मिसाल है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि इंसानियत और सामूहिक प्रयास किसी की जिंदगी को कैसे बदल सकते हैं। गोपालन चंद्रन 1983 में बेहतर रोज़गार की तलाश में बहरीन गए थे। उस समय वह युवा थे, सपनों से भरे हुए, और अपने परिवार के लिए एक अच्छा भविष्य बनाने की चाहत रखते थे। लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था। बहरीन में उनके नियोक्ता की मृत्यु हो गई, और उनके पासपोर्ट सहित सभी महत्वपूर्ण दस्तावेज़ गुम हो गए। इसके बाद गोपालन की जिंदगी एक अनिश्चितता के भंवर में फंस गई। बिना दस्तावेज़ों के वह न तो भारत लौट सकते थे, न ही वहां कानूनी रूप से रह सकते थे। वह एक ऐसी ज़िंदगी जीने को मजबूर हो गए, जहां उनकी कोई पहचान नहीं थी। इन 42 सालों में गोपालन ने अनगिनत...
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