Gada-Caste-History-In-hindi गाड़ा बिरादरी की गाथा: समय के साथ एक अनोखी यात्रा मध्य एशिया की सरजमीं से शुरुआत कभी मध्य एशिया की विशाल घास के मैदानों में, तुर्क कबीलों के बीच, एक योद्धा समुदाय ने जन्म लिया—गाड़ा बिरादरी। अपनी असीम ताकत, अडिग वफादारी और युद्ध कौशल के लिए मशहूर ये गाड़ा लोग उस जमाने में एक तूफान की तरह थे। इनकी कहानी भारत की मिट्टी से कोसों दूर शुरू हुई, जहाँ साहस और सम्मान ही इनकी पहचान था। मुहम्मद बिन कासिम के साथ हिंदुस्तान में कदम (711 ईस्वी) गाड़ा बिरादरी का हिंदुस्तान से रिश्ता तब जुड़ा, जब 8वीं सदी की शुरुआत में उमय्यद खलीफा के युवा अरब सेनापति मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध घाटी पर नजरें गड़ा दीं। साल 711 में, खलीफा अल-वलीद के हुक्म से, कासिम ने राजा दाहिर को सबक सिखाने की ठानी, जिसने अरब व्यापारियों के साथ बदसलूकी की थी। समुद्र के रास्ते अपनी सेना लेकर कासिम ने देबल (आज का कराची के पास) पर कब्जा जमाया और अरोर के मैदान में दाहिर को धूल चटाकर सिंध में इस्लाम का परचम लहरा दिया। इस जीत के पीछे गाड़ा योद्धाओं का बड़ा हाथ था। कासिम की फौज के "शान और जान" कहे जाने वाल...
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